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________________ रहा है । पदार्थ उनमे छूट नही पा रहा है और मनग्य और भौतिकवादी हुआ जा रहा है। यह कह देना कि उनकी माधना में कमी है या उनका आध्यात्मवाद ढकोमला है प्रश्न का उत्तर नहीं है। मनोविज्ञान ने नये क्षितिज खोल दिये है। मालम होता है कि पदार्थ एन म्ह भी है जिसे केवल मानमिक रूप मे त्यागकर हम उममे मक्त नहीं हो मकने। ___ महावीर का दर्शन मभी पदार्थों की जीव की हेगरकी (Hurarchy) में स्थान देकर उन्हें एक निम्न ग्नर का जीव बनाता है । यही नरीका पदार्थ में पूर्णतया निलिान और मक्त होने का है। पदार्थ और जीव का द्वैत इम ज्ञान में कट्टर द्वैत नहीं रह जाना।। महावीर का मष्टि ज्ञान परी मष्टि को एक विकाम कम (Evolutionary Process) में देखना है। यह विनार हमलं, मा. वर्गमा आदि आनिक विकामवादियों के हृदय के निकट है। आज के जीवशास्त्रवेत्ता खगना आदि लेबोरेट्री में पदार्थो के गयोग गे जीवित नत्व को बनाने की रहस्यमय कोगियों में लगे हैं। उनका विश्वाम है कि जीविन गर्गगें और पदार्थों के बीच कंबल विकाम की ही दुर्ग है। जिम दिन वे प्रयोगों द्वाग अपने दम विवाम को गिद्ध कर गकंग, महावीर को ममझने में हम और आमानी होगी। यह विगाल दष्टिकोण, मन्यग्राहिता और निरपेक्ष नजर, जो महावीर में जगी, मनग्य जानि की महाननम उपलब्धि है । महान अग्रज नाटककार जार्ज बर्नाटग, जो अन्यन्न अहमवादी और म्वतत्र विचारो का जनक था और जिमने पूर्ववर्ती किमी भी महापुरूप को अपनं ममान नहीं ग्वीकाग वह भी महावीर के व्यक्तित्व को प्रणाम करता है। उसने पाट गन्दी में ग्वीकार किया है कि तीर्थकगें की विचारधाग बट अकली मम्पनि है जिगम से अपने विचारों की पूर्ण प्रति नि मिलनी है। एक विशेष निहामिक नथ्य है जिस पर न नो निहागकागें ने प्रकाग डाला है न दानिको नं । वह नन्त्र में मधिन है। नत्र विद्या बांद. हिन्दू, मस्लिम और ईमाई मभी धर्मो ने अपने-अपने ढग में
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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