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________________ गई है। महावीर का दर्शन सभ्य और अमभ्य मान्यताओं को दो भागों में नहीं बांटना । उन्होंने मनुष्य के चेतन और अचेतन के मभी अंधेरे और उजले तत्वों को अर्थ दिया है । उन्हें उनकी मही जगह दिवाई है जिमसे मनुष्य के मानसिक क्षितिज पर कुहामा बनने के बजाय वे उसके उत्तरोत्तर विकास में सहायक बनें। ___ इम तरह हम देखते है कि जीव के नीन विशिष्ट रूप है । एक तो निगोद रूप जहां वह अमर्न पदार्थ मे भिन्न नहीं है । दूमग वह रूप जिमे स्पिरिट (Spirit) या चैतन्य विहीन आत्मा कहना अधिक उपयवत होगा। नीमग रूप जीव का वह है जो जीवित प्राणियों में है, जो चेतन है। ___ मुम्लिम विचारधाग में भी इन म्हो (जिन आदि रूपों में) के अस्तित्व को माना गया है । किम्मा हानिमनाई आदि गुगनी अग्बी कथाओं में पर्वतों की म्ह (Spirits) का जिक्र है । वे पवन स्थिर है हजारों वर्षो मे गफाओं में अपनी जगह अचल खडे है। ये हिलइल नही सकने । परन्तु हानिम जो जानी है उममे उन पर्वतों की म्ह (Spirits) वान करती है। प्राचीन विश्वामों में पूरे नगर की आत्मा का भी अग्नित्व स्वीकाग गया है। कितने ही जड पदार्थो की उपासना इम भाव में की गई है कि उनमें भी म्ह है। यह विश्वाम मनग्य के रोजाना के जीवन में कदम-कदम पर व्यक्त है। कोई भी दर्शन टर्म भठला कर या इमका दमन करके इमं विश्वाम मे अंधविश्वाम नो बना सकता है परन्तु मनाय को, इममे मुक्ति नहीं दिला मकना । पदार्थों की म्हों में निहित जोगक्ति है उमे मनप्य ने आदि यग में पहचाना था और उमका यमबद्धविकाम तांत्रिक पद्धनियों में किया गया। परिणाम खौफ़नाक निकले और मनाय जानि आज तक इन म्हों के भय की वन्दी है । दार्गनिक इम ममम्या पर विचार करना अपनी बद्धि की बरबादी मममने है । इमलिए जादूगर,प्रेत विद्या-विशारद और इमरीकाली विद्याओं में ग्मे हुए लोग मनुष्य की आत्मा को और भी जकड़ने जा रहे है। यह ममम्या कितनी 69
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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