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________________ और उत्तगर्द्ध में मृत्यु के पक्ष मे । महावीर लोभायनिगक्ति को मनाय का भाग्य विधाता या कृर गामक नही मानने । फ्रायड और जग के मर्मभेदी दर्शन और अकाट्य तथ्यों मे निगग हुए आज के मनग्य के लिए अभी आशा है महावीर के दर्शन में क्योकि महावीर के विचारोको यदि फायड और जुग की गब्दावली में रखा जाय तो एक शक्ति है जिमे यह कर,नृशंम और मनमानी चलने वाली लोभायनिवित प्रणाम करती है और पूरी तरह उमके वश में हो जाती है और वह शक्ति है प्रेम । महावीर वार-बार प्रेम पर जोर दे रहे है क्योकि मानसिक तल पर मवम मगक्न लोभायनिगक्ति को केवल प्रेम देवता ही मान्य है। जब मनप्य की आत्मा में प्रेम का उदय होता है तो लोभार्यानक्ति मनमानी कग्ना छोड देती है। उसकी मन्य चाह मनन् जीवन चाह में बदल जाती है क्योकि यह मनन् जीवन चाह मन्य के दुम्बो को अपने में लीन कर लेनी है । लोभानिक्ति मे इन्छाओं का यह द्वैन मिट जाता है। मनग्य की आत्मा परिवृत हो जाती है । मन्य वाह के दूर होते ही दुर्वामनाए, ऋग्ना, शील, हिमा, बैर, द्वेष आदि मनग्य की आत्मा में दूर हो जाने है क्योंकि ये गव मत्य चाह के हीम्पान्तर है। महावीर इमी मन्य को जीतने की बात जीवन भर अपने गियों में कहते रहे । आज पश्चिम का प्रौढ व्यक्ति गममता है कि वह स्वभाव मे आय के कारण जीवन और आनन्द विरोधी है और उसे यया वर्ग की अठखेलियो आर उछ मलनाओं को पर्दाग्न नग्ना नाहिये । वह ममनना है कि वह उनकी आलोचना केवल यांवग करना है। उधर यवा वर्ग ममझना है कि उसके मभी कम जीवन की बगियों और इच्छाओं के प्रतीक हजार उनम कुछ भी कल पिन नहीं है। यह फायट आर जग की देन है जिन्होंने कहा कि जवानी नक लोभार्यानशक्ति जीवन के पक्ष में रहती है और उसके बाद मन्य के पक्ष में हो जाती है । इममे यवा वर्ग और वृद्धता के बीच खाई बन गई है और मनुष्य जाति का मानसिक विकाम रुक गया है। इसमकं पानी को चलता 63
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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