SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वयं ही बुगई नही पनपेगी। उमे बगई कहकर अस्तित्व मत दो। वह parasite की तरह है जो मन् पर अपने को बैठाना चाहता है। ईश्वर ने मनप्य आत्माको अच्छाही बनाया है। यह अमन है जो अनेक विकृत रूप लेकर उम पर बैठना चाहता है। इन विन नियों के अस्तित्व पर आत्मा विश्वास न करे । इन्हें वादलो में बनने हाथी और माटी की तरह नि:मार ममझे। नत्र आत्मा में इनके प्रति विरोध न जन्मंगा और वह अपने मच्चे पथ पर लगी रहेगी। यदि उन्हें गच मान लिया तो इनमे लड़ने में जिन्दगी गजर जायेगी। आत्मा में, गन् में भी ये ही विकार आ जायेगे । आत्मा को अविचलिन रहना है दुनिया की बगइयों मे । यह मन्याम है । मच्चा मन्यामी वह है जो मगार में निलिान है, जो ममार मे घणा नहीं करता । जो गमार में भागा नही है। इस तरह नो उमकी आत्मा में घणा और पलायन के विप अकुर फट पडेगे । मच्चा मन्यागी ममार को अमन् मानना है । वह उगकी अच्छाइयों में नहीं रहना, न उगकी बगायो को बगई कहता है । वह जान गया है कि ममार अन्छा है न बग। ममा निर्माण है। जो यह दीग रहा है यह वह नहीं है. न उमका उल्टा है । यह है ही नहीं। यह अमन है जंगे अभिनंना को छट है कि वह को भी बन जाय उसी तरह म अमन् को छट है कि वह अन्छाईवगविगीका भीम्प घर पर आ गवता है। पर वह न अच्छा है न बगई। वह है ही नहीं। जिगने यह जान लिया वही कंवल कमल की तरह कीना में निलिग्न रह माना है। "वोन्छिन्द मिजनप्पणी बमय माग्थ्य व पाणिय" मगवीर दम कमल गदग आचरण बतानं ह मन्चे गन्यामी का। दम ममार की बगव्यों को जो बगई नहीं ममझना, अन्छायो को अच्छा नहीं ममझना, जो उन्हें अमन् मानना है, माया प्रपच मानना है, हाथ की मफाई या जादू ममझना है, उगकी आत्मा इममें न उनजिन है न प्रेरित । उमकी आत्मा अपनी गन गान्ति को अक्षण ग्वेगी। वह इम ममार मागर में विचरना हुआ भी इमम निलित 59
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy