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________________ गृह त्याग महावीर का गृह त्याग और मन्याम एक संकेतात्मक (Symbolic) क्रिया है । यह उम मन्याम और गृह त्याग मे सर्वथा अलग है जो माधारणतः मन्याम लेने वाले मभी माघ करते है, चाहे वह किमी भी धर्म में दीक्षित हों । महावीर अपने परिवार में मम्बन्ध विच्छेद कर लेने को कहते है । प्रथम कार्य वस्त्र त्यागने के उपगन्न जो वह करते है वह है अपने ही हाथो मे अपने केगो को उखाड फेकना । मामान्य जीवन में लिप्त किमी भी व्यक्ति के लिये परिवार में मम्बन्ध विच्छेद कर लेने की बात बहुन कठोर मागं लगती है। किचिन् अमानवीय भी लगती है। आनिक मनोविज्ञान फायट और जग के अन्वेषणों के पश्चात् भी करीब-करीब दमी नतीजे पर पहुचा है । जग म्पाट गन्दी में कहता है, जो आत्मा मन्य में उगना चाहती है उम यह मम्बन्ध विच्छंद करना ही होगा। मा परिवार का केन्द्र है। प्रत्येक मनाय में एक ग्वाभाविक प्रेरणा है मा की ओर भागने की। मा की शरण लेने की। वह मन्य का मामना नहीं करना चाहता । मन्य उसे बहुत कर लगता है और मां की गोद परियों की कहानियों की नग्ह ग्गीन और मखद है। मा की गोद में वह गजा है, मत्रमे बडा योद्धा है । मनाय की आत्मा की गहगइया इम गोद में नग्न हो जाती है । दलिय प्रत्येक मनग्य की लोभायनि शक्नि ( Libido ) उमे मा की और ग्वीचनी है । यह लोभायनि शक्ति क्या है। यह मयंगक्ति है। उपनिपदों में यह एक ऐसे मर्प की तरह वणिन है जो हमारी आत्मा को घरहा है। यह रुद्र है। यह हमें जीवन भी देनी है और नष्ट भी करनी है। इसमें दो विपरीत 45
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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