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________________ एकन्व में जागना है । अब मां को वह अपना आयाव्यविनत्व नहीं समझ मकना । अब उमं अपन में ही नारी गक्नि के उद्गम को वना है। द्वैन की स्थिति बई आगम की है । पर इममें हमेशा नहीं न्हा जा मकना। इमका त्याग कर एकत्र में जीना अनिवार्य है। जो इम वान को नहीं मममन व जीवन ममर में गर्मान रहते हैं । मा की गोद में उतर जाने के बाद भी उनी गोद में लौट जाने के मपने दम्बने रहने है। वे विमिन मनम ह । महावीर उम पुरुप मिह को जगाने है हमम जिमग हम और मानविन यं दोनों प्रगट हुए । इम द्वैन के नल पर मर जाना है--एक अंगी दिव्य मृत्य, जिम, "ग्लेटो" के शब्दों में, कंवल दानिक ही जानते है । कोई भी चीज नहीं मग्नी Nothing of himn that doth fade All but suffers a sca change Into soinething glorious and strange महावीर उम लाचार. महाग स्थिति को जीवन के लिये अपमानजनक मानत है जब हम मानगक्ति के लिये भटक रहे हों। यह भटक हम सबके जीवन में लगी है। वे कहते हैं उम उद्गम को दुद लें जिममे यह गक्नि प्रगट होती है। वहां तक पहुंचने के लियं उम व्यक्तित्व को मरना होगा जो हम है । यह मानमिक मृत्य दीप का वन्न जाना है। कोई भी चीज़ नही मग्नी। विधिपूर्वक. अदा मे दम नल पर जो मग्ना जानता है वह एक उच्च नल पर जियेगा. उन अलभ्य स्रोतों में जहा द्वैत नही है । इम पौरुप के जगाने के लिये मंयम की जरूरत होगी क्योंकि यह वह पुरुष है जिममे मन्दरम् अभिन्न है. जिममे मन्दग्ना अनन्त घारों में मनन् फट रही है । मन्दग्ना का उपभोग कर जीना आमान है परन्तु उमे अपने में ही जन्म देना कठिन है । जो ऐमा करने है वे जान जाते है कि इस पवित्र फल को कंमे रखा जाना है। इसका मन्य नव नक समझ में नहीं आता जब तक हम इमे अपने में जन्म नहीं देने । कोई भी व्यक्ति सुन्दरता का मूल्य, उमकी रक्षा की महना. संयम की 42
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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