SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर व्यवहारिक चिन्तक थे । उन्हें अपने समय में व्याप्त मानवीय मनम की उलझनों, दुविधाओं का ज्ञान था। वे मनग्य को उन मानसिक द्वन्द्वों से मुक्त कर एकता में स्थित कर देना चाहते थे। उसी को उन्होंने ध्यान कहा । दिमाग को हठ द्वारा किसी केन्द्र पर लगा देने को उन्होंने ध्यान नही माना । जीवन में जो द्वन्द्व आज है वे एकत्व में अपना समायोजन करते चलें इसी को उन्होंने घ्यान कहा । महावीर ने जिम घटने बढ़ने वाली आत्मा का जिक्र किया वह मनोवैज्ञानिक आत्मा है। जिमे फ्रायड ने साइक्लोजिकल मेल्फ कहा । यह दुर्जेय और जिद्दी है। यह खरबूजे की तरह खरबूजों को देखकर रंग पलट देती है। महावीर ने कहा विनय, सदाचार, व्यवहारिक चिन्तन मे इम सहस्रमन्त्री मानमिक आत्मा को एकाग्र कर लो। इमे अनेक स्थलों पर मर जाने दो ताकि भीतर मुन्दरम् के बीच इमका पुनर्जन्म हो । जब ऐमा होगा तो यह आत्मा एक वायुविहिन स्थान पर निर्विघ्न जलनी लो की तरह हो जायेगी। इम आत्मा के मंयमिन, एकाग्र हो जाने पर आगे का मार्ग उमे आप दीव जायेगा । मानमिक यात्रा में बहुन मोड़ है। व्याम ने दम पथ को गहगई में जाने वाली मछलियों के मार्ग की नगह बनाया है जिम ट्रेम नहीं किया जा मकना । कही अचानक मोड़ है, वही अचानक मूल्य विपरीत हो जाते हैं। यह निरन्तर उर्ध्वना नहीं है। इमलिये महावीर ने पहले से वह आगे का मार्ग नहीं बनाया केवल उनना बताया जितना विना उलझाये बनाया जा मकना था और बाकी व्यक्ति पर छोड़ दिया। वह जव मार्ग पर लग जायेगा नोम्बयं उमी में वह दीप जल जायेगा जो आगे का मार्ग दिग्वायेगा। अभी तो जरूरी है कि वह प्रार्गम्भक दीप जल जाये । लोग आत्मा के उम विकृत रूप को अपने भीनर पकड़ मके जो वह हो गई है और उमे गद्ध करने का यन्न गर कर दे। महावीर ने इम आत्मा को अन्यन्त दुर्जेय भी कहा है-"दुग्नयं चैव अप्पाणं । मब्वमप्पे जिए जियं"-क आन्मा को जीन लेने पर सब कुछ जीना जा सकता है। उन्होंने आत्मा को निन्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त 13
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy