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समपरा _मां और पिता जी को जिन्होंने संयम और शील का जीवन जोकर हम भाई-बहनों को धर्म का उपदेश कर्मों से दिया ।
ज्यों-ज्यों जीवन आगे बढ़ा
मेरे नेत्र सम्यक चरित्र के ऐसे नमने देखने को तरसने लगे। तब मैने जाना विधि ने कैसे बिन मेरे मांगे
ये मनुष्य रन हमारे ही घर मे रख दिये थे।
"निर्मल