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________________ साधना के महापथ पर | GE बताया है। बताया गया है कि प्रभु ने त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में जिस गुहावासी सिंह को हाथ से चीर डाला था, वह कई भवों के बाद सुदंष्ट्र नाम का नागकुमार हुआ और प्रभु महावीर को नाव में यात्रा करते देख कर उसे पूर्व वर का स्मरण हो आया। प्रभु तो देष-मुक्त थे, पर नागकुमार ने द्वेषवश गंगा में यह तूफान उठा कर उन्हें कष्ट देना चाहा, तभी कम्बल-संबल नामक दो भक्त नागकुमारों ने सुन्दष्ट्र को इस दुष्कर्म के लिए धिक्कारा । सुन्दष्ट लज्जित होकर अपने दुष्कृत्य से बाज आया। और सभी यात्री लोक-क्षेमंकर श्रमण महावीर का नाम स्मरण करते-करते कुशलतापूर्वक अपने-अपने घरों को पहुंच गये। लक्षण मुंह बोलते हैं रत्न यदि मिट्टी में भी पड़ा रहे तो भी उमकी निर्मल कीति और महाघंता छिपी नहीं रहती। महापुरुष चाहे जिस वेप, देश और परिवेष में रहे, उसके दिव्य लक्षण, उसकी महत्ता स्वयं मुंह बोलते रहते हैं, इसीलिए कहा जाता है"भाग छिपे न भभूत लगाये।" श्रमण भगवान् महावीर नाव से उतरकर गंगा के शान्त रेतीले मैदान पर चलते हुए 'थूणाक' सन्निवेश के परिसर में पहुंचे और एकान्त में ध्यानारूढ़ हो गये । कुछ समय बाद गंगा तट पर पुष्य नामक एक सामुद्रिक घूमता हुआ आया। तट की स्वच्छ धूलि पर महावीर के चरणचिन्ह अंकित थे। देखते ही पुष्य चौंक उठा, उसने पदचिह्नों में अंकित रेखाओं को सूक्ष्मता के साथ देखा और मन-ही-मन सोचने लगा-"ये दिव्य लक्षण तो किसी चक्रवर्ती के हैं सचमुच कोई चक्रवर्ती सम्राट् विपत्ति में फंसा हुआ अकेला ही अभी-अभी इस रास्ते से नंगे पैरों गुजरा है। ऐसे अवसर पर उसके पास पहुंच कर सेवा करनी चाहिए; ताकि भविष्य में जब वह चक्रवर्ती बनेगा तो मेरा भी सितारा चमक उठेगा।" ___सामुद्रिक पुष्य पद-चिन्हों का अनुसरण करता हुआ सीधा थूणाक सन्निवेश के परिसर म पहुंच गया। वहाँ उसने एक श्रमण को ध्यान-स्थित देखा। यद्यपि उनकी मुखाकृति पर चक्रवर्ती के तुल्य अपूर्व तेजस्विता और दिव्य आभा चमक रही थी, किन्तु साथ ही एक श्रमण की सौम्यता और समता भी थी। पुष्य कुछ क्षण भ्रमित-सा, चकित-सा देखता रहा, फिर एकदम निराश हो गया। सिर पीटते १ घटनावर्ष वि० पू० ५१०। -विषष्टि० १०३
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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