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________________ साधना के महापय पर | ७७ जीवित है ? नागदेवता ने काटा नहीं ?' धीरे-धीरे कुछ नजदीक आये । देखा, नाग बिल में मुंह डालकर स्थिर पड़ा है । वे और निकट आये, नाग को कंकड़ आदि फेंककर छेड़ने लगे। पर वह तो शांत, स्थिर ! मुर्दे की भांति बिल में मुह किये पड़ा रहा । ग्वालों ने खुशियां मनाई-श्रमण के प्रभाव से नागदेवता शान्त हो गये । अब आस-पास की सैकड़ों स्त्रियाँ दूध, घी, और खीर लेकर नाग की पूजा करने आई। घी और खीर के कारण हजारों चींटियां नाग के शरीर पर चिपक कर उसे काटने लगीं। पर नागदेवता तो अब सचमुच शान्ति का देवता बन गया था । अपने दुष्कृत्यों पर पश्चात्ताप करते हुए उसने अनशन कर लिया और पन्द्रह दिन बाद मृत्यु प्राप्त कर वह सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। श्रमण महावीर की इस अहिंसा के अमृतयोग की आस-पास के जनपद में सर्वत्र चर्चा होने लगी। वास्तव में ही उनकी अहिंसा, अभय और मैत्री-इतनी सजीव, इतनी सतेज और इतनी प्रभावशाली थी कि क्रूर हिंसक और तीव्र विषधर भी उसके योग से शान्त और समभावी बन गये । यही तो चमत्कार था उस अमृतयोगी की अहिंसा में !' क्षेमंकर महावीर विषधर चंडकौशिक का उद्धार कर श्रमण महावीर उत्तर-वाचाला में पधारे और नागसेन नामक गृहस्थ के घर पर पन्द्रह दिन के उपवास का पारणा किया। ___ गंगानदी की धारा को भांति महावीर की गति सदा प्रवहमान रहती थी। उत्तर वाचाला से वे सेयंबिया (श्वेताम्बिका) नगरी में पधारे, वहां के राजा प्रदेशी ने इम दिव्य तेजस्वी श्रमण को नगर में आया देखा तो हृदय सहज श्रद्धा से आप्लावित हो उटा । जिस प्रकार बुद्ध को राजगृह में भिक्षाटन करते देख कर उनकी तेजस्वी एवं सौम्य आकृति से महाराज बिम्बिसार आकृष्ट हो, उनके चरणों में पहुंचे थे, कुछ उसी प्रकार का आन्तरिक आकर्षण और भक्तिभाव प्रदेशी के हृदय में उमड़ा । वह श्रमण महावीर की सौम्याकृति, तेजस्विता और आकृति से प्रतिपल टपकती समता-शान्ति से प्रभावित हो उनको भक्ति करने लगा । पर, समतायोगी महावीर तो प्रदेशी के इस भक्तिभाव में भी उसी प्रकार तटस्थ रहे, जिस प्रकार चंडकौशिक के दंश मारने में । सेयंविका से प्रभु सुरभिपुर को जा रहे थे। मार्ग में १ घटना वर्ष वि० पू० ५१० । विषष्टिः १०३
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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