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________________ ५२ | तीर्थकर महावीर मुक्त निर्ग्रन्थ-दशा में पहुंच गये। उन राजसी वस्त्रों में भी उन्हें बन्धन की गन्ध आने लगी, बस, क्षण भर में वे राजसी परिधान से मुक्त हो गये, अब उनके विशालकाय स्कन्ध पर एक अत्यन्त शुभ्र हिम-सा उज्ज्वल देवदूष्य लहरा रहा था । वर्धमान ने, पूर्वाभिमुख होकर स्थिर खड़े हुये, अपने हाथों से पंच मुष्टिक केश लोच किया। और मेघ-गम्भीर स्वर में सिद्धों को नमस्कार कर भावी जीवनचर्या के लिये यह कठोर प्रतिज्ञा स्वीकार की "मैं समभाव की साधना को स्वीकार करता हूं। माज से मन, वचन और कर्म से सावद्य (सपाप) आचरण का त्याग करता हूं। पूर्वकृत पाप आचरण से निवृत्त होता हूं और भविष्य के लिये संकल्पबद्ध होता हूं। मैं प्रत्येक स्थिति में समभाव रखगा, हर प्रकार के कष्ट, संकट और उपसर्ग को समभावपूर्वक सहन करूंगा। आपत्तियों के तूफानों में भी मेरी समता का नन्दादीप सदा-सर्वदा प्रज्वलित रहेगा। मैं अविचलित मन से साधना के इस आग्नेय पथ पर बढ़ता चलूगा सिद्धि के अन्तिम द्वार तक-प्राणों के अन्तिम उच्छ्वास तक।" चारों ओर एक अजब शान्ति छाई हुई थी, दिशाएं मौन थीं, पवन जैसे स्थिर था, असंख्य देव-देवियाँ एवं अगणित नर-नारियाँ शान्त और उत्सुकता के साथ वर्धमान महावीर की साधना का दिव्य उद्घोष सुन रहे थे। सहसा असंख्य-असंख्य कंठों से एक साथ घोष गूंज उठा-"श्रमण वर्धमान की जय !" असंख्य-असंख्य स्वरों में श्रद्धा ललक रही थी। श्रद्धा और औत्सुक्य के मावेग में हजारों नयन एक साथ बरसने लगे, हाथ स्वतः जुड़ गये, मस्तक महावीर के चरणों में झुक गये। राजकुमार वर्धमान अब श्रमण वर्धमान महावीर बन गये। भोग में योग की साधना करने वाले अब कठोर योग मार्ग पर एकाकी चल पड़े। दीक्षा के पवित्र संकल्प के साथ ही श्रमण महावीर को 'मनःपर्यव' ज्ञान की प्राप्ति हो गई जिसके द्वारा प्रत्येक समनस्क प्राणी के मनोभावों का बोध हो जाता।' श्रमण महावीर के सशक्त कदम एकान्त वन की ओर बढ़ गये, श्रद्धा-पूत असंख्य-असंख्य आंखें उन्हें अपलक निहारती रह गई। पवित्र आंसुओं ने उस महा तपस्वी को विदा दी। वे चल पड़े एकाकी-भवन से वन की ओर"" ! -आवश्यक चूणि पृ० २६७ १ करेमि, सामाइयं सव्यं सावज्ज जोगं पच्चक्वामि। २ आचारांग २।२४१३३
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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