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________________ जीवन का प्रथमचरण | ३१ घोष किया। उनके साथ कुछ अन्य महापुरुष भी पैदा हुए। चीन में लाओत्से और कन्फ्यूसियस ने विचारक्षेत्र में हलचल मचा दी थी। ग्रीस में पाइथागोरस, सुकरात एवं प्लेटो ने विचार-जगत में क्रान्ति की, तो ईरान (पारस-परसिया) में जरथुस्त ने।" इस प्रकार उस युग का वायुमण्डल पुरानी धार्मिक मान्यताओं एवं रूढ सामाजिक परम्पराओं के प्रति एक साथ बगावत करने को मचल उठा था। इस बगावत के मुख्य निशाने थे, धार्मिक अन्धविश्वास और सामाजिक विषमव्यवस्थाएं। धर्म का सम्बन्ध व्यक्ति की आत्मा के साथ होता है । उस युग में धर्म को जाति के साथ जोड़ दिया गया था । एक वर्ग-विशेष के हाथ में धर्म के सम्पूर्ण अधिकार केन्द्रित थे । पापाचरण करके भी ब्राह्मण अपने को सदा पवित्र और सबका गुरु होने का दावा करता था। वहां सरल और सेवाभावी शुद्र को धर्म सुनने का भी अधिकार नहीं रह गया था। सभी प्राणियों में एक ही ईश्वर का अंश प्रतिबिम्बित मानने वाला अद्वैतवादी विद्वान शूद्र की छाया को भी अपवित्र माने और उसके स्पर्श से धर्मभ्रष्ट होने की बात करे, यह कितना हास्यास्पद और अविवेक-पूर्ण आचरण था, पर इसका विरोध कौन करे? जिस नारी को वेदों में गृहलक्ष्मी और गृह-साम्राज्ञी कह कर सम्मान दिया गया, वह इस युग में एक पराश्रिता, उपेक्षिता, अधिकारहीन और स्वर्ण-धन-धान्य गाय, भैंस आदि की भांति ही एक परिग्रह (गुलाम) मात्र मानली गई थी। उसके धार्मिक अधिकार और सामाजिक सम्मान छीन लिये गये थे । न जाने चन्दना जैसी कितनी सुन्दरियाँ चौराहों पर खड़ी कर गाजर-मूली की भाँति बची जाती थी। जिन गाय, बैल, अश्व, मृग आदि मूक पशुओं को मानव जाति के निकटतम उपकारी मानकर राष्ट्र की सम्पत्ति स्वीकार की गई थी, और जिनकी जीवनरक्षा के लिये मेघरथ एवं नेमिनाथ जैसे महापुरुषों ने बड़े-बड़े बलिदान किये, उन मूकनिरीह पशुओं को देवपूजा के नाम पर यज्ञ में होमा जा रहा था । नारी, शूद्र और पशुओं को जैसे सुखपूर्वक जीने का भी कोई अधिकार नहीं रह गया था। शक्तिशाली राजा एक दूसरे निर्बल राज्य पर आक्रमण कर लूट-खसोट मचाता था । वहाँ की सुन्दरियों को, पुरुषों को गुलाम बनाकर असीमित भोग और शोषण का चक्र चलाता था। काशी, कौशल, वैशाली, कपिलवस्तु आदि अनेक राज्यों में यद्यपि गणतन्त्र था, पर वह गणतन्त्र राज्य-प्रशासन तक ही सीमित था, सामान्य प्रजा को कोई विशेष लोकतन्त्रीय अधिकार मिले हों, ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता । अंग, मगध, वत्स, सिन्धु-सौवीर, अवंती आदि देशों में जहाँ राजतन्त्र था।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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