SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवान्त-साफ्ना-शिका | २७१ परामर बेगेनं गुममानाच पानि । धम्मो वीवो पहना पगई सरणमुत्तमं ॥ -उत्तराध्ययन २३२६९ जरा-मरण के वेग (प्रवाह) में बहते-डूबते प्राणियों के लिए धर्म ही दीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है। धर्म के प्रकार दुबिहे धम्मे-सुयधम्म चेव चरितधम्मे घेव। -स्थानांग २१ धर्म के दो रूप हैं-श्रुतधर्म (तत्त्वज्ञान) और चारित्रधर्म (नैतिक आचार)। चरित्तधम्म दुविहेआगार परित्तधम्म व अणगार परित्तधम्म । -स्थानांग २।१ चारित्रधर्म दो प्रकार का है-आगार चारित्रधर्म (बारह व्रतरूप श्रावकधर्म) अनगार चारित्रधर्म (पंचमहावतात्मक श्रमणधर्म)। . बत्तारि धम्मवारा संती, मुत्ती, मन्नवे, महवे। -स्थानांग ४४ धर्म के चार द्वार हैं-अमा, संतोष, सरलता और विनय । धर्म-साधना जा जा बच्चा रयणी, न सा परिनियतई। महम्मं कुषमाणस्स अफला ति राइनो ॥ मामाच्या रवनी, न सा परिनियतई। धम्मंग कुणमाणस्त सफला ति राइलो ।। - -उत्तरा० १४१२४-२५ जो-जो रात्रि जा रही है, वह फिर लौट कर नहीं आती हैं। अधर्म करने वाले की रात्रियां निष्फल चली जाती हैं। जो-बो रात्रि जा रही है, वह फिर लौटकर नहीं पाती है। धर्म करने वाले की रात्रियों सफल होती है।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy