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________________ २५४ | तीर्थकर महावीर शिष्य-संपदा जिस रात्रि में भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ उसी रात्रि में गणधर इन्द्रभूति को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। केवलज्ञानी किसी संघ का उत्तराधिकार स्वीकार नहीं करते, इस परम्परा के कारण भगवान् महावीर के पश्चात् संघ का दायित्व व नेतृत्व गणधर सुधर्मा के कंधों पर आया । भगवान् महावीर के धर्मसंघ में१४ हजार श्रमण थे, जिनमें मुख्य थे इन्द्रभूति । ३६ हजार श्रमणियां थीं, जिनमें मुख्य थी आर्या चन्दना । १ लाख ५६ हजार श्रावक थे, जिनमें मुख्य थे शंख और शतक । ३ लाख १८ हजार श्राविकाए थीं, जिनमें मुख्य थीं सुलसा और रेवती। इनमें से ७०० श्रमण व १४०० श्रमणियों ने मोक्ष प्राप्त किया । ८०० शिष्य अनुत्तर विमान में देव हुए। भगवान महावीर की शिष्य-संपदा एवं गणों का विस्तृत विशेष वर्णन कल्पसूत्र (सुबोधिका टीका) में देखना चाहिए । भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर थे, उनके नो गण थे। गणघरों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है१ इन्दति ५० वर्ष गृहवास ३० वर्ष छमस्थ १२ वर्ष केवलीजीवन २ अग्निभूति ४६ , १२ ॥ ३ वायुभूति ये तीनों गौतम गोत्री सहोदर भाई थे। ४ व्यक्त ५ सुधर्मा ५० , ४२ ८ , ६ मंडित ५३ ॥ १४ ॥ १६ ॥ ७ मौर्यपुत्र ६५ , १४ ॥ १६ ॥ ८ बकंपित ४८ , ९ , ९ अचलाता १. मेतार्य ११ प्रभास १५, ८-६, और १०.११ गणधरों के एक-एक गण थे। इनमें से नौ गणधर भगवान की विद्यमानता में ही निर्वाण प्राप्त हो गये । मतः उनके शिष्य दीर्घजीवी सुधर्मा के नेतृत्व में सम्मिलित हुए।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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