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________________ २२८ | तीर्थकर महावीर काल की अपेक्षा से शाश्वत और अनन्त है। भाव की अपेक्षा से अन्तरहित है।" "इसीप्रकार सिद्धि (मोक्ष) और सिद्ध (मुक्त-आत्माओं) के विषय में जानना चाहिए।" स्कन्दक ने पुनः पूछा-"भंते ! किस मरण से जन्म-मरण की परम्परा घटती है, और किससे बढ़ती है?" भगवान ने उत्तर दिया "मरण दो प्रकार के हैं-बालमरण और पंडितमरण । बाल अज्ञानी है, उसे आत्मस्वरूप का भान नहीं होता। वह बारह प्रकार के बालमरण से (असमाधिपूर्वक) मरता है तो जन्म-मरण की परम्परा को बढ़ाता है । पंडित ज्ञानी है, मात्मद्रष्टा है, वह दो प्रकार के मरण से (समाधिपूर्वक) प्राण त्याग करता है। अतः वह पंडित-मरण से जन्म-मरण की परम्परा को घटाता है ।" स्कंदक-"मंते ! बालमरण बारह कौन से हैं ?" भगवान्-"बालमरण के बारह भेद इस प्रकार हैं१ भूख की पीड़ा से तड़प कर मरना। २ विषय-मोग की अप्राप्ति से निराश होकर मरना । ३ पापों का शल्य हृदय में छुपाए रखकर मरना । ४ वर्तमान जीवन में असफल होकर पुनः इसी गति का आयुष्य बांधकर मरना। ५ पर्वत से गिरकर। ६ वृक्ष से गिरकर । ७ जल में डूबकर। ८ अग्नि में जलकर। विष खाकर। १० शस्त्रप्रयोग कर। ११ फांसी बाकर। १२ गीध अथवा अन्य मांसभक्षी पशुजों से शरीर नुचवाकर मरना । ये बारह बालमरण हैं । अर्थात् इस प्रकार की मृत्यु के समय मन में अशांति, व्याकुलता तथा विषयासक्ति रहने से ये षन्म-मरण को बढ़ाने वाले हैं।" स्कंदक- "भगवन् ! पंडित-मरण दो कौन-से है ?"
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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