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________________ कल्याण-यात्रा | २२० बादि के सम्बन्ध में रोह ने प्रश्न किये और भगवान ने दोनों को ही शाश्वतभाव कहकर उनकी पूर्वापरता का निषेध किया । रोह ने फिर पूछा __ "भंते ! पहले अण्डा हुआ और पीछे मुर्गी हुई या पहले मुर्गी, पीछे अण्डा पैदा हुना?" "अंग कहां से बाया ?" "मुर्गी से।" "और मुर्गी कहां से आई?" "अण्डे से।" "तो फिर दोनों में पहले कौन और पीछे कौन, यह कैसे कहा जा सकता है? दोनों पहले भी हैं और पीछे भी ! जैसे मुर्गी के बिना अंडा नहीं और अण्डे के बिना मुर्गी नहीं, और दोनों में पहले कौन हुआ यह भी नहीं कहा जा सकता; क्योंकि दोनों ही शाश्वतभाव है।" (इसी प्रकार उक्त लोक, जीव आदि के सम्बन्ध में जानना चाहिए)। इस प्रकार रोह अनगार ने अनेक शाश्वत प्रश्नों के पूर्वापर सम्बन्ध के विषय में पूछा और भगवान् ने उक्त शैली के द्वारा उनके पूर्वापरक्रम का निषेध करते हुए बताया-शाश्वत वस्तु में पूर्वापर कम नहीं होता। स्कन्वक की जान-पर्चा परिव्राजक प्रकरण में बताया जा चुका है कि स्कन्दक परिव्राजक ने भगवान से लोक की सान्तता तथा अनन्तता के विषय में प्रश्न पूछे । वे प्रश्नोत्तर संक्षेप में इस प्रकार हैं "भंते ! लोक सान्त (अन्त सहित) है या अनन्त ?" महावीर-"स्कन्दक ! द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से यह लोक चार प्रकार का है। द्रव्य की अपेक्षा से लोक सान्त है। क्षेत्र की अपेक्षा से असंस्थ कोटाकोटि योजन विस्तार वाला है। अतः सांत है । काल की अपेक्षा से लोक शाश्वत है और अन्तरहित है। भाव की अपेक्षा से यह अनन्त है। "जीव के विषय में भी इसी प्रकार चिन्तन करना चाहिए - द्रव्य की अपेक्षा से जीव एक और सांत है। क्षेत्र की अपेक्षा से वह असंख्य प्रवेशी और सांत है । १ भगवती सूत्र, शतक । देशक
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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