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________________ २१२ | तीर्थकर महावीर भगवान महावीर को भी अत्यन्त विकट शारीरिक वेदना भोगनी पड़ी। इसी अवधि में पहले वैशाली का महायुद्ध हुआ. वैशाली के विध्वंस की घटना अभी ताजा ही थी कि श्रावस्ती में गोशालक का विद्रोह और फिर जमालि के साथ मतभेद खड़ा हो गया। समतासागर भगवान महावीर के साथ गौशालक के विद्रोह का प्रकरण निम्नप्रकार है पहले बताया जा चुका है कि महावीर को दीक्षा लिए जब दो वर्ष होने आये पे तब नालन्दा में गौशालक उनका स्वयंभू शिष्य बना था। लगभग छः वर्ष तक वह भगवान के साथ-साथ रहा। अनेक प्रकार के मान-अपमान, पीड़ा एवं संत्रास भी उसने सहे, किन्तु अन्त में इन कष्टों से घबराकर वह भगवान् से पृथक हो गया । यह ध्यान देने की बात है कि जब गौशालक महावीर के साथ रहा, तो महावीर के प्रति उसके मन में भक्तिभाव था, भले ही वह चपल, कुतूहलप्रिय तथा कुछ उद्दण्डवृत्ति का रहा। किन्तु जब कहीं महावीर की विशिष्टता का प्रसंग आता तो वह दूसरों का तिरस्कार कर अपने धर्माचार्य के तपस्तेज की दुहाई देने से भी नहीं चूकता था। महावीर ने भी उसे वेश्यायन तपस्वी द्वारा प्रयुक्त तेजोलेश्या से भस्मसात होते-होते अनुकम्पापूर्वक बचाया था और तेजोलब्धि जैसी तपःशक्ति की साधना का मार्ग भी बताया। ये घटनाएं अब इतिहास के पृष्ठों में दब की थीं। गौशालक तेजोलन्धि एवं निमित्तज्ञान जैसी शक्तियां प्राप्तकर अभिमान से गदरा उठा था। जनता में उसकी शक्ति का सिक्का जम चुका था और वह अपने को आजीवकमत का आचार्य बताने लग गया था। इससे भी बढ़कर वह स्वयं को तीर्थकर भी बताकर लोगों में मूठा गौरव व दम्भ फलाने लगा । श्रावस्ती गोशालक का प्रमुख केन्द्र था, वहाँ 'अयंपुल" नाम का गापापति और हालाहला नाम की कुम्हारिन गोशालक के परम भक्त थे। गौशालक अधिकतर श्रावस्ती में हालाहला की भांडशाला में ही ठहरता था। जिन दिनों गौशालक श्रावस्ती में अपने को तीर्थकर प्रसिद्ध कर रहा था। उन्हीं दिनों भगवान महावीर श्रावस्ती के कोष्ठक-उद्यान में आकर ठहरे । श्रावस्ती के बाजारों में यह चर्चा होने लगी कि-"आजकल श्रावस्ती में दो तीयंकर आये यह गौशासक के पस प्रमुख भावकों में एक बा। २ दीक्षा का सताईता वर्ष (वि.पू. ४०६)
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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