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________________ १९१ | तीर्थंकर महावीर श्रेणिक की इस घोषणा का बड़ा ही सुन्दर प्रभाव पड़ा । अनेक नागरिकों के अतिरिक्त जालि-मयालि आदि श्रेणिक के पुत्रों तथा नन्दा, नन्दमती आदि १३ रानियों ने श्रमण धर्म स्वीकार किया। बेणिक की दस रानियों ने उसकी मृत्यु के बाद जब वैशाली के महायुद्ध में कालकुमार आदि दस राजकुमार मर गये (ये राजकुमार अजातशत्र कणिक के पक्ष में सेनापति बनकर दस दिन तक लड़े थे) तब भगवान के पास प्रव्रज्या ग्रहण करली थी। इस प्रकार श्रेणिक की अनेक रानियों में से २३ रानियों ने तथा अभयकुमार, मेघ, नन्दीषेण प्रमुख १६ से अधिक राजकुमारों ने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की। मगधपति श्रेणिक का भगवान महावीर के धर्मसंघ के साथ निकटतम सम्बन्ध रहा और उसकी श्रद्धा एवं धर्मनिष्ठा भी बादर्श रही। श्रेणिक की सम्यक्त्व परीक्षा हेतु एक देव ने भी अनेक प्रकार की विकुर्वणाएं दिखाई।णिक की नियन्य प्रवचन से आस्था हटाने का प्रयत्न भी किया, पर श्रेणिक अपनी तत्व श्रद्धा एवं निग्रन्थ श्रमणों के प्रति अविचल भक्ति की परीक्षा में खरा उतरा। उसकी दृढ़ता पर प्रसन्न होकर देव ने उसे ऐतिहासिक अठारहसरा हार दिया, यही हार आगे चल कर 'रथमूसलसंग्राम' व 'महाशिलाकंटकयुद्ध' का प्रत्यक्ष निमित्त बना। इस प्रकार भगवान महावीर एवं उनके धर्मसंघ के प्रति श्रेणिक की अगाध भक्ति एवं धर्म युक्ति का यह प्रसंग सदा प्रेरक एवं स्मरणीय रहेगा। राजनीति को नया मोड़ भगवान महावीर का तत्त्वचिंतन जितना व्यक्ति-परक था, उतना ही समाजपरक भी। समाज एवं राज्यव्यवस्था जब तक दोष पूर्ण रहती है, व्यक्ति परक साधना, जिसे हम अध्यात्म कहते हैं, शुद्ध रूप से हो नहीं सकती। चूंकि व्यक्ति के जीवन का आधार तो समाज ही है। इसीलिए मानना होगा कि भगवान महावीर जितने गहरे अध्यात्मवादी थे, उतने ही गहरे समाजवादी भी । शूद्र से घृणा, श्रमिक का शोषण, दास को प्रताड़ना, स्त्री जाति का अपमान, बंधन तथा असीमभोग १ बगुत्तरोवबाइल साबो एवं अंतगडदसानो २ दीमा का २६ वर्ष । वि. पु. ४८७-४८६ । १ पप्पा महापुरिस परियं ।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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