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________________ १८८ | तीर्थंकर महावीर i रमता रहे । अत्यन्त अभावों में भी महावीर का श्रावक कितना समताशील व प्रसन्न रहता इसका एक उदाहरण भी हमारे सामने आता है । अगले प्रकरण में बताया गया है कि जब मगधपति श्रेणिक ने अपनी नरक गति टालने के लिये भगवान महावीर से कुछ उपाय पूछे तो अन्य उपायों के साथ एक उपाय यह भी बताया गया "पूर्णिया धावक की एक सामयिक खरीदने पर नरक टल सकती है ।" यह सुनते ही श्रेणिक स्वयं सीधे पहुंचे पूर्णिया श्रावक के आवास पर ! आवास क्या, एक छोटा सा बसेरा था, बस वह उसी बसेरे में रहता, थोड़ा-बहुत सामान ! एक चरखा - पूणी ! रोज पूणी कातना, बेचना और जो मिले उससे जीवन निर्वाह कर सन्तुष्ट रहना । नियमित अपनी सामायिक- स्वाध्याय करना । मगधपति श्रेणिक को अपने घर पर आया देखकर पूर्णिया श्रावक ने प्रसन्नता के साथ स्वागत किया और पूछा - " मैं क्या सेवा कर सकता हूं।" श्रेणिक ने कहा -- "सेवा मैं तुम्हारी करूंगा। तुम तो मेरा एक कार्य करो, बड़ा उपकार मानूंगा।" पूर्णिया - क्या ? श्रेणिक - बस, तुम्हारी एक सामायिक मुझे चाहिये । जो भी मूल्य चाहो; मांग लो । लाख, दस लाख जो मन हो । बस एक सामायिक चाहिए ! पूर्णिया श्रावक कुछ देर चकित होकर सुनता रहा, फिर बोला - सम्राट ! आप कैसी बात करते हैं ? सामायिक कभी बेची जाती हैं ! श्रेणिक - क्यों नहीं, भगवान महावीर ने कहा है तुम्हारी एक सामायिक मैं खरीद लूँ तो मेरी नरक गति टल सकती है। बोलो, क्या मूल्य चाहते हो ? विस्मय के साथ पूर्णिया श्रावक बोला-- राजन् ! जब भगवान महावीर ने ऐसा कहा है तो उसका मूल्य भी उन्हीं से पूछ लीजिये ! मैं नहीं बता सकता । श्रं णिक ने भगवान महावीर से पुन: पूछा -- भंते ! पूर्णिया धावक सामायिक बेचने को तैयार है, मैं उसका जो भी मूल्य होगा दे दूँगा । आप कृपा करके इतना बता दीजिये कि एक सामायिक का मूल्य क्या होना चाहिये । प्रभु महावीर ने सम्राट को उद्बोधित करते हुए कहा कि ! सामाfor आत्मा की समता का नाम हैं । उस आत्म शांति का भौतिक मूल्य क्या हो सकता है ? लाख करोड़ स्वर्ण मुद्राएं तो क्या, तुम्हारा यह साम्राज्य तो उस सामा
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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