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________________ १२० | तीर्थकर महावीर सेठ लुहार को बुलाने गया, चन्दना द्वार के बीच हाथ में सूप और उसमें रखे बासी बाकले लेकर खाने का विचार कर ही रही थी कि उसे अपनी इस दयनीय दशा पर ग्लानि आने लगी, साथ ही चम्पा के राजप्रासादों का वह भव्य सुखमय अतीत स्मृतियों में उतर आया और जीवन के इस उतार-चढ़ाव पर चिन्तन करने लगी, सहसा सामने तपोमूर्ति महाकारुणिक श्रमण महावीर भिक्षार्थ पर्यटन करते-करते उसी के भवन द्वार की ओर बढ़े आ रहे थे। चन्दना ने प्रभु को देखा तो, उसका रोम-रोम नाच उठा, दुःख की भीषण ज्वाला के बीच यह सुख की मधुर वयार उसके तन-मन को प्रफुल्लित कर गई । देवार्य मेरे द्वार पर आ रहे हैं, पर हाय ! मैं क्या भिक्षा दूंगी ! उसे स्मरण आया, जब चम्पा के राजप्रासादों में देवार्य भिक्षार्थ आते थे और माता धारणी और मैं अत्यन्त भक्तिपूर्वक प्रभु को भिक्षान्न दिया करती थी, और आज...... आज ! मेरे हाथों में हथकड़ियां, पैरों में बेड़ियाँ, सिर मुंड़ा हुआ, वस्त्र के नाम पर तन पर एक कछोटा और अन्न के नाम पर बासी उड़द के बाकलेइस स्थिति में प्रभु को क्या दूंगी ? हर्ष और अवसाद के इस भयानक उतार-चढ़ाव में चन्दना का रोम-रोम उत्कंठित हो गया, और आंखें आंसुओं से भीग गई। तभी देवार्य ने देखा-उनका घोर अभिग्रह आज पूरा हो रहा है ? संकल्पित सभी बातें यथावत् मिल रही हैं। उन्होंने चन्दना के भक्ति-विभोर हृदय के समक्ष हाथ फैला दिये । भाव-विभोर चन्दना ने उड़द के बाकले प्रभु के कर-कमलों में अपित कर दिये । प्रभ ने वहीं पारणा कर लिया।' सहसा आकाशमण्डल देव-दुंदुभियों से गूंज उठा। 'अहोवानं-अहोदानं' की घोषणा से कौशाम्बी का कोना-कोना मुखर हो गया। चन्दना की बेड़ियां स्वर्ण मणिजटित आभूषण बन गई । सिर पर दिव्य केश कान्ति बिखेरने लगे और धरती पर दिव्य पुष्प एवं रत्नों की वृष्टि होने लगी। यह अद्भुत दृश्य देखकर कौशाम्बी के हजारों नर-नारी धनावाह सेठ के घर की ओर दौड़ पड़े। कौशाम्बी के घर-घर में यह संवाद बिजली की तरह फैल गया कि एक दासी ने देवार्य को भिक्षा दी है। देवार्य के अभिग्रह-पूर्ति का संवाद सुनते ही १ परम्परागत कथाओं में कहा जाता है कि प्रभु के दर्शन कर चन्दना हर्ष-विभोर हो गई, उसके आँसू सूख गये, और इस प्रकार अभिग्रह अपूर्ण देखकर प्रभु वापस लौट गये। तभी बंदिनी चन्दना की अखेिं अपने दुर्भाग्य पर बरस पड़ी। प्रभु ने वापस लौट कर देखा कि उसकी आंखों से अब धारा बह रही थी।........ किन्तु इस प्रकार प्रभु का लौट जाना और वापस मुड़ना-किसी प्राचीन चरित्रग्रन्थ में देखने को नहीं मिलता।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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