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________________ साधना के महापच पर | ११३ कोने में रखे हुए हों-इस दशा में यदि मुझे कोई भिक्षा प्राप्त होगी तभी मैं भिक्षा ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।" चरित्रकार आचार्यों ने इस घोर अभिग्रह को सर्वथा अशक्य एवं दुस्संभवप्रायः बताया है, किन्तु कौशाम्बी की तत्कालीन परिस्थितियों का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि ये सब स्थितियां उस युग में संभव थीं, इस प्रकार के क्रूर एवं अमानवीय व्यवहार स्त्री जाति के साथ किये जा रहे थे और चम्पा की लूट के बाद तो कौशाम्बी उनका केन्द्र बन गया था। सम्भवतः इन्हीं घटनाओं का प्रतिबिम्ब विश्ववत्सल महावीर के हृदय में झलका हो, और निश्चित ही उन अत्याचारों की शिकार मातृजाति का उद्धार करने में उनका यह अभिग्रह सर्वथा सफल सिद्ध हुआ। कौशाम्बी की परिस्थितियां कौशाम्बी वत्स देश की राजधानी थी । भारतवंशी राजा शतानीक वहां का शासक था। उसकी रानी मृगावती वैशाली गणाध्यक्ष चेटक की पुत्री थी। वत्स देश का पड़ोसी राज्य था अंग; जिसकी राजधानी चम्पा थी । वहां पर राजा दधिवाहन का शासन था : दधिवाहन की रानी धारिणी भी चेटक की पुत्री थी- इस प्रकार दोनों पड़ोसी राज्य न केवल क्षेत्र की दृष्टि से निकट थे, किन्तु आपसी रिश्तेदारी से भी निकटतम थे । राजनीति को बिजली की भांति चंचल और वेश्या की भांति बहुरूपा बताया गया है । यह किस समय, किस प्रकार का रूप धारण करती है, कुछ पता नहीं चलता। प्रगाढ़ मित्र क्षणभर में जानी दुश्मन बन जाते हैं, और जन्मजात शत्रु दूसरे क्षण ही घनिष्ठ मित्र ! शतानीक और दधिवाहन परस्पर साढू थे, इसीलिये एक दूसरे के प्रति विश्वस्त और निर्भय भी थे। शतानीक ने इस विश्वास का लाभ उठाकर अचानक चम्पा पर आक्रमण कर दिया। दधिवाहन को जैसे ही आक्रमण का पता चला, वह स्तब्ध रह गया, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। विश्वास में की गई इस चोट का उसके मन पर इतना गहरा आघात लगा कि उसे अतिसार का रोग हो गया। शतानीक की सेनाएं चम्पा में घुस गई। पराजित हुआ दधिवाहन जान बचाकर कहीं भाग गया। १ चेटक महावीर के मामा थे। मृगावती श्रमण महावीर की बहन होती थी। २ कुछ चरित्र लेखकों ने जन-संहार को रोकने के लिये शतानीक के समक्ष दधिवाहन के आत्म. समर्पण की कल्पना भी की है।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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