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________________ १०२ / तीर्षकर महावीर श्रमण महावीर आगे चले गये। संगम उनका शिष्य बनकर साथ-साप चल पड़ा । जब महावीर गांव के बाहर उद्यान में ध्यानस्थ हो जाते तो, संगम गांव में जाकर कहीं सेंध लगाता, कहीं चोरियां करता, तथा अन्य दुष्कृत्य करता, लोग उसे पकड़कर पीटने लगते तो कह देता-"मैं क्या करूं, मुझे तो गुरुजी ने यह काम सिखाया है, तुम्हें कुछ कहना है तो उन्हीं से कहो।" भोले लोग महावीर के पास आते, उनसे पूछते, पर वे तो मौनव्रत धारण किये ध्यानमग्न रहते। लोग संगम की बात सच मानकर महावीर को पीटते, प्रहार करते। ऐसे ही कई विकट प्रसंगों के बाद एक दिन श्रमण महावीर तोसलिगांव के बाहर उद्यान में ध्यानस्थ खड़े थे। संगम पीछे लगा ही था। उसने गांव में जाकर चोरी की और चोरी के औजार लाकर महावीर के पास ही छिपा दिये । चोर का पता लगाते राजपुरुष महावीर के निकट पहुंचे। पास में शस्त्र रखे देखकर महावीर को ही चोर समझा और पकड़कर गांव के अधिकारी-तोसलि क्षत्रिय के समक्ष प्रस्तुत किया। क्षत्रिय ने श्रमण महावीर से पूछा-"तुम कौन हो ?" महावीर मौन थे। दो-चार बार पूछने पर भी महावीर ने उत्तर नहीं दिया तो क्षत्रिय क्रुद्ध होकर बोला-"यह रंगे हाथों पकड़ा गया है, चोर तो है ही, पर फिर अपनी चोरी भी स्वीकार नहीं करता है। बोलता भी नहीं, जबान सी रखी है ? जाओ इसे फांसी पर लटका दो।" क्षत्रिय के आदेशानुसार श्रमण महावीर को फांसी के तख्ते पर लाकर खड़ा कर दिया गया। राजपुरुषों ने पुनः-पुनः समझाया होगा-"तुम अपना नाम क्यों नहीं बता देते, कुत्ते की मौत क्यों मर रहे हो ? खैर, मरना ही है तो मरो, पर कोई अन्तिम इच्छा हो तो बताओ, उसे पूरी कर दें, ताकि मरते-दम प्राण अटके नहीं।" इन कर व्यंग्य भरे आक्रोश वचनों पर भी महावीर तो शान्त और मौन रहे । क्रूर राजपुरुषों ने भी फांसी का फंदा महावीर के गले में लगाया और नीचे से तख्ता हटा दिया । पर आश्चर्य । जैसे ही तख्ता हटा, फंदा टूट गया और महावीर नीचे आ गिरे। दुबारा दूसरी रस्सी बांधकर फंदा डाला गया, पर वही पहले जैसा ही टूट गया। सभी दर्शक आश्चर्य से, फटी आंखों से देख रहे थे, आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ, आज ही ऐसा क्यों हो रहा है ? हजारों अपराधियों की जान निगल जाने वाली फांसी आज एक बार नहीं, दो बार नहीं, सात बार टूट गई है। आखिर बात क्या है ? कहीं कुछ दाल में काला है लगता है यह कोई चोर नहीं, साधु है। जानबूम कर कोई अन्याय न हो जाय ? राजपुरुषों का दिल सहम गया, वे दौड़कर तोसलि क्षत्रिय के पास आये, क्षत्रिय ने यह घटना सुनी तो उसका हृदय धड़क उन
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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