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तृतीय सर्ग : शिशु वय
लग रही मनोहर कैसी,
उनकी कुछ श्यामल प्रखें। रत्नारे नयनों से छवि, झीनी जीवन्त झलकती । जिसको लखने को निशदिन, ये अांखें सदा तरसती ॥
हैं धन्य भाग्य रानी नप, सखियों मृत्यों पुरजन के। हाँ, किए. जिन्हों ने होंगे,
दर्शन त्रिशला-नन्दन के ॥ जगने पर सुत के सब जन, बातें हैं उनसे करते । बे बोल न कुछ भी पाते, पर बीच-बीच मुस्काते ॥
उनके मुस्काने पर हो, सब उन पर बलि-बलि जाते। करते प्रसन्न सबको यों,
शिशु बर्द्धमान हैं बढ़ते ॥ जब रात पड़े पर भी है, शिशु को न नोंद कुछ पाती। सो जा मुन्ना तू सो जा, मां लोरी ललित सुनाती ॥