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तीर्थङ्कर भगवान महावीर जन्मोत्सव • समयोपलक्ष में,
खुली दान की शालाए । निशि-दिन दान जहाँ बटता है,
रिक्त न लौट व्यक्ति जाएं। दश दिन तक यों हुआ महोत्सव,
हर्ष-ज्योति अविरल जागी । गया निराशा अन्धकार भी,
निविड क्लेश-रजनी भागी ॥ राज-ज्योतिषो ने ज्योतिष से,
योग लगा कर बतलाया । उत्तर फाल्गुणी नक्षत्र में,
जन्म पुत्र ने है पाया ॥ इसके जन्म समय से ही है,
सब चीजों की वृद्धि हुई । प्रतः राज-सुत 'वर्द्धमान' ही
होगा इसका नाम सही ॥ पुर का चर्चा-विषय बन रहा,
जन्म-वृत्त त्रिशला-सुत का। कोई कहता 'देवों ने भी,
शुभाभिषेक किया इनका ॥' कोई कहता, 'जा भा हा,
पर शुभ लक्षण हैं बालक के ।