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तीर्थकर भगवान महावीर छोटी वय में एक महापुरुष के जीवन पर ऐसी उत्कृष्ट और सर्वाग पूर्ण रचना रचकर अपनी प्रतिमा का परिचय दिया है उसके लिए मेरी बधाई स्वीकार कीजिए।" (पत्र ता. ६-६-५९) प्रो० राजनाथ जी पाण्डेय, सागर विश्व विद्यालय,
सागरः___ "एक प्रति महाकाव्य तीर्थकर भगवान महावीर' की मिलो पढ़कर गद्गद् हो उठा । क्यों न हो! "बाढ़ पून पिता के धर्मा" के अनुसार प्रापकी प्रतिभा ऐसी होनो ही चाहिये। धर्म चेतना बिहीन इस घोर कलिकाल में आपके पूज्य पिता जो निबिड़ तिमिराच्छन्न प्ररण्य के बीच सत्पथ और सद्धर्म रूपी दीपक का प्रकाश देते रहे हैं । ऐसे प्रास्तीक विद्वानों और प्रादर्श महापुरुष के पुत्र में प्रारम्भ से हो विद्वता एवं भावुकता के इन शुभ अंकुरों का मै हृदय से स्वागत और अभिनन्दन करता है।
प्रापका महाकाव्य सादगी और साधुता से प्रत्यन्त मोतप्रोत है । बधाई स्वीकार करें।" (पत्र ता. २३-८-५०)
श्री शिवसिंह जी चौहान 'गुञ्जन'* एम० ए०, साहित्यरत्न, साहित्यालंकार, साधना कुटोर, बरिहा,
, रामनगर:- . . "तुम्हारी काव्य कृति 'तीयंकर भगवान महावीर' पढ़कर प्रत्यन्त प्रसन्नता हुई । महापुरुषों के लोक कल्याणकारी विशद जीवन-वृत्त की काव्य रूप में सफल पावतरणा कलाकार के उत्कृष्ट काव्य-कौशल की परिचायिका होती है। मैं समझता है 'तीर्थकर भगवान महावीर' तुम्हारे प्रथम प्रयास को प्रतिफल है। वय एवं व्यवस्था की दृष्टि से कृति की यह उत्कृष्टता पाच
मापने मुझे (पारेना को) मासे १२ तक एस० एन०एम० इण्टर काज कायमच में पड़ाया है। मेरे हृदय में काम बिबांगन ने में बापका विशेष हाप पारे । 'गुरु' के प्रति बागार प्रकट करने के