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तीर्थङ्कर भगवान महावीर
बन्द जब प्रास्त्रव हुआ तो, कर्म सञ्चित जो पुराने । साधना की अग्नि में वे, तब तभी होंगे जलाने ॥
क्योंकि हो जाते किसी विधि, यान में जब छिद्र किञ्चित । तो कुशलतम पोत चालक, बन्द करता छिद्र निश्चित ॥
बाद में फिर पोत-बाहक, फेकता प्राया हुआ जल । इस तरह जल-यान करता, ठीक, वह होता न बोझिल ॥
यों स्वचेतन-यान के सब, बन्द आत्रव-द्वार करने ।
और सञ्चित कर्म-जल-कण, निर्जरा से क्षार करने ॥
पार होगा इस तरह यह, विश्व-जल से यान अपना । और पायेगा सहज हो, मोक्ष-तट-चिर लक्ष्य अपना ॥
सोचता क्या लोक-रचना, द्रव्ब छः का खेल लगता ।