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________________ चतुर्थ सर्ग : किशोर वय इनने में ही सङ्गम सुर को, प्रागत जन-संकुल-बोध हुआ। वह स्वाभाविक स्वरूप में झट, प्राया सन्मति को उठा लिया। बैठाया निज कन्धों ऊपर, प्रानन्द-सहित, मन हर्ष किया । पहुचा वह स्वयम् वीर को ले, प्रागन्तुक सु-जनों के समीप । 'तुमने यह क्या था खेल रचा ?' संगम सुर से बोले महीप ॥ उत्तर न देव कुछ कर पाया, सन्मति उतरे झट कन्धों से । सम्राट निकट जा खड़े हुए, वे स्वस्तिवाद कर सब जन मे ॥ नृपवर सन्मति के शिर पर अब, थे हाथ फेरते खड़े हुए। संगम-सुर-उत्तर सुनने को. ___ मानों वे केवल रुके हुए ॥ बोला सुर-खेल कुतूहल जो, समझे, पर शौर्य-परीक्षा-हित। मैंने यह था सब डॉग रचा, पर हुए वीर पर इसमें जित ॥
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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