SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [७/२८-२९ चोरको चोरी करनेके लिये स्वयं मन वचन और कायसे प्रेरणा करना अथवा दूसरेसे प्रेरणा कराना, इसी प्रकार चोरी करने वालेकी अनुमोदना करना स्तेनप्रयोग है। चोरके द्वारा चुराकर लाई हुई वस्तुका खरीदना तदाहृतादान है। बहुमूल्य वस्तुओंको कम मूल्यमें नहीं लेना चाहिये और कम मूल्य वाली वस्तुओंको अधिक मूल्यमें नहीं देना चाहिये इस प्रकारकी राजाकी आज्ञाके अनुसार जो कार्य किया जाता है वह राज्य कहलाता है । उचित मूल्यसे विरुद्ध अनुचित मूल्यमें देने और लेने को अतिक्रम कहते हैं। राजाकी आज्ञाका उल्लंघन करना अर्थात् राजाकी आज्ञाके विरुद्ध देना और लेना विरुद्धराज्यातिक्रम है । राजाकी आज्ञाके बिना यदि व्यापार किया जाय और राजा उसे स्वीकार कर ले तो वह विरुद्धराज्यातिक्रम नहीं है। नापनेके प्रस्थ आदि पात्रोंको मान और तौलनेके साधनोंको उन्मान कहते है । कम परिमाणवाले मान और उन्मानके द्वारा किसी वस्तुको देना और अधिक मान और उन्मान के द्वारा लेना हीनाधिकमानोन्मान है। लोगोंको ठगनेके लिये कृत्रिम खोटे सुवर्ण आदिके सिक्कोंके द्वारा क्रय-विक्रय करना प्रतिरूपकव्यवहार है। ___ ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचारपरविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडाकामतीव्राभिनिवेशाः॥२८॥ परविवाहकरण, परिगृहीतेत्वरिकागमन, अपरिगृहीतेत्वरिकागमन, अनङ्गक्रीड़ा और कामतीब्राभिनिवेश ये ब्रह्मचर्याणुव्रतके पाँच अतिचार हैं। दूसरोंके पुत्र आदिका विवाह करना या कराना परविवाहकरणं है। विवाहित सधवा अथवा विधवा स्त्रीको जो व्यभिचारिणी हो परिगृहीतेत्वरिका कहते हैं। ऐसी स्त्रियोंसे बातचीत करना, हाथ, चक्षु, आदिके द्वारा किसी अभिप्रायको प्रकट करना, जघन स्तन मुख आदिका देखना इत्यादि रागपूर्वक की गई दुश्चेष्टाओंका नाम परिगृहीतेत्वरिकागमन है। स्वामीरहित वेश्या आदि व्यभिचारिणी स्त्रियोंको : अपरिगृहीतत्वरिका कहते हैं। ऐसी स्त्रियोंसे संभाषण आदि व्यवहार करना अपरिगृहीतेत्वरिकागमन है। गमन-शब्दसे जघन स्तन मुख आदिका निरीक्षण, संभाषण, हाथ भ्रक्षेप आदिसे गुप्त संकेत करना आदि ही विवक्षित हैं। कामसेवनके अगोंको छोड़कर अन्य स्तन आदि अङ्गोंसे क्रीड़ा करना अनङ्गक्रीडा है। कामसेवनमें अत्यधिक इच्छा रखना कामतीव्राभिनिवेश है। कामसेवन कालमें भी यह दोष होता है तथा दीक्षिता, कन्या, तिर्यञ्चिणी आदिके साथ कामसेवन करना भी कामतीब्राभिनिवेश है। परिग्रहपरिमाणाणुव्रतके अतिचारक्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुष्यप्रमाणातिक्रमाः ॥ २९ ॥ क्षेत्र-वास्तु, हिरण्य-सुवर्ण, धन-धान्य, दासी-दास और कुप्य इन वस्तुओं के प्रमाणको लोभके कारण उल्लंघन करना ये क्रमसे परिग्रह परिमाणाणुव्रतके पाँच अतिचार हैं। अनाजकी उत्पत्तिके स्थानको क्षेत्र-खेत कहते हैं। रहने के स्थानको वास्तु कहते हैं। चाँदीको हिरण्य और सोनेको सुवर्ण कहते हैं। गाय भैंस हाथी घोड़े आदिको धन तथा गेहूँ चना ज्वार मटर तुअर धान आदि अनाजोंको धान्य कहते हैं। नौकरानी और नौकरको दासी-दास कहते हैं। वस्त्र कपास चन्दन आदिको कुप्य कहते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy