SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५।४१-४२] पश्चम अध्याय ४३३ उछ्वासों का एक थोव होता है और सात थोवोंका एक लव होता है। साढ़े अड़तीस लवोंकी एक नाली होती है। दो नलियोंका एक मुहूर्त होता है और आवलीसे एक समय अधिक तथा मुहूर्तसे एक समय कम अन्तमुहूर्तका काल है। इसी तरह माह, ऋतु, अयन, वर्ष, युग, पल्योपम आदिकी गणना होती है। द्रव्यका लक्षण द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥ ४१ ॥ जो द्रव्यके आश्रित हों और स्वयं निर्गुण हों उनको गुण कहते हैं। निर्गुण विशेषणसे द्वयगुक, व्यणुक आदि स्कन्धोंकी निवृत्ति हो जाती है। यदि 'द्रव्याश्रया गुणाः' ऐसा ही लक्षण कहते तो द्वथणुक आदि भी गुण हो जाते क्योंकि ये अपने कारणभूत परमाणुद्रव्यके आश्रित हैं। लेकिन जब यह कह दिया गया कि जो गुणको निर्गुण भी होना चाहिये तो द्वयणुक आदि गुण नहीं हो सकते क्योंकि निर्गुण नहीं हैं किन्तु गुण सहित हैं। ___ यद्यपि घट संस्थान आदि पर्यायें भो द्रव्याश्रित और निर्गुण हैं लेकिन वे गुण नहीं हो सकती क्योंकि 'द्रव्याश्रया'का तात्पर्य यह है कि गुणको सदा द्रव्यके आश्रित रहना चाहिये । और पर्यायें कभी कभी साथ रहती हैं, वे नष्ट और उत्पन्न होती रहती हैं अतः पर्यायोंको गुण नहीं कह सकते । नैयायिक गुणोंको द्रव्यसे पृथक् मानते हैं लेकिन उनका ऐसा मानना ठीक नहीं है। यद्यपि संज्ञा, लक्षण आदिके भेदसे द्रव्य और गुणमें कथंचित् भेद है लेकिन द्रव्यात्मक और द्रव्यके परिणाम या पर्याय होनेके कारण गुण द्रव्यसे अभिन्न हैं। पर्यायका वर्णन तद्भावः परिणामः ॥ ४२ ॥ धर्मादि द्रव्योंके अपने अपने स्वरूपसे परिणमन करनेको पर्याय कहते हैं। धर्मादि द्रव्योंके स्वरूपको ही परिणाम कहते हैं। परिणामके दो भेद हैं-सादि और अनादि । सामान्यसे धर्मादि द्रव्योंका गत्युपग्रह आदि अनादि परिणाम है और वही परिणाम विशेषकी अपेक्षा सादि है । तात्पर्य यह कि गुण और पर्याय दोनों ही द्रव्यों के परिणाम हैं। पांचवा अध्याय समाप्त For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy