SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१० www.kobatirth.org तत्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार मानक देव उत्कर्ष Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४ २०-२२ स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्या विशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिकाः || २० || वैमानिक देवों में क्रमशः ऊपर ऊपर आयु, प्रभाव-शाप और अनुग्रहकी शक्ति, सुखइन्द्रियसुख दीप्ति शरीर कान्ति, लेश्याओंकी विशुद्धि, इन्द्रियोंका विषय और अवधिज्ञान के विषयकी अधिकता पाई जाती है । वैमानिक देवों में अपकर्ष - गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीनाः ॥ २१ ॥ वैमानिक देव गमन, शरीर, परिग्रह और अभिमानकी अपेक्षा क्रमशः ऊपर ऊपर हीन हैं । ऊपर ऊपरके देवों में गमन, परिग्रह और अभिमानकी हीनता है । शरीरका परिमाण - सौधर्म और ऐशान स्वर्गमें शरीरकी ऊँचाई सात अरत्नि, सनत्कुमार और माहेन्द्र में छह, अरनि, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लान्तव और कापिष्ट में पाँच अरत्नि, शुक्र महाशुक्र शतार और सहस्रारमें चार अरत्नि, आनत और प्राणत में साढ़े तीन अरत्नि और आरण और अच्युतमें तीन अरत्नि शरीरकी ऊँचाई है। प्रथम तीन मैवेयकों में ढाई अरत्नि, मध्यप्रैवेयक में दो अरत्नि, ऊर्ध्व ग्रैवेयक और नव अनुदिशमें डेड़ अरत्नि शरीरकी ऊँचाई है । पाँच अनुत्तर विमानों में शरीर की ऊँचाई केवल एक हाथ है। मुंडे हाथको रत्न कहते हैं । Tarfe at श्याका वर्णन पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥ २२ ॥ दो युगलों में, तीन युगलों में और शेषके विमानों में क्रमशः पीत, पद्म और शुक्ल लेश्या होती है । For Private And Personal Use Only सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गमें पीत लेश्या होती है। विशेष यह है कि सानत्कुमार और माहेन्द्र में मिश्र - पीत और पद्म लेश्या होती है । ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ट, शुक्र और महाशुक्र स्वर्ग में पद्म लेश्या होती है। लेकिन शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार स्वर्ग में मिश्र - पद्म और शुक्ल लेश्या होती है। आनत, प्राणत, आरण और स्वर्ग में और नव ग्रैवेयकों में शुक्ल लेश्या होती है। नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में परमशुक्ल लेश्या होती है । यद्यपि सूत्र मिश्रलेश्याका ग्रहण नहीं किया है किन्तु साहचर्य से मिश्रका भी ग्रहण कर लेना चाहिये, जैसे 'छाते वाले जा रहे हैं' ऐसा कहने पर जिनके पास छाता नहीं है उनका भी ग्रहण हो जाता है उसी प्रकार एक लेश्या के कहने से उसके साथ मिश्रित दूसरी लेश्याका भी ग्रहण हो जाता है। सूत्रका अर्थ इस प्रकार करना चाहिये सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में पीत लेश्या और सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में मिश्र-पीत और पद्मश्या होती है। लेकिन पद्मलेश्याकी विवक्षा न करके सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग पीतलेश्या ही कही गई है । ब्रह्मसे लान्तव स्वर्ग पर्यन्त पद्मलेश्या और शुक्र से सहस्रार स्वर्ग पर्यन्त मिश्र - पद्म और शुक्ल लेश्या होती है लेकिन शुक्र और महाशुक्रमें शुक्ललेश्या कविवक्षा न करके पद्म लेश्या ही कही गई है। इसी प्रकार शतार और सहस्रार स्वर्ग में पद्मलेश्याको विवक्षा न करके शुक्ललेश्या ही सूत्रमें कही गई है।
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy