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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१९] चतुर्थ अध्याय ४०९ इसके ऊपर लान्तव और कापिष्ट स्वर्ग हैं। इनके दो पटल हैं-ब्रह्महृदय और लान्तव । प्रथम पटलकी प्रत्येक विमानश्रेणी में बीस विमान हैं। और द्वितीय पटलकी प्रत्येक विमानश्रेणीमें उन्नोस विमान हैं । इस पटलकी दक्षिण श्रेणीके नौवें विमानमें लान्तव और उत्तर श्रेणी के नौवें विमानमें कापिष्ट इन्द्र रहते हैं। इसके ऊपर शुक्र और महाशुक्र स्वर्ग हैं। इनमें महाशुक्र नामक एक ही पटल है। इस पटलके मध्यमें महाशुक्र नामक इन्द्रक विमान है। चारों दिशाओं में चार विमानश्रेणियाँ हैं। प्रत्येक विमानश्रेणीमें अठारह विमान हैं । दक्षिण श्रेणीके बारहवें विमानमें शुक्र और उत्तर श्रेणी के बारहवें विमानमें महाशुक्र इन्द्र रहते हैं। इसके ऊपर शतार और सहस्रार स्वर्ग हैं। इनमें सहस्रार नामक एक ही पटल है। चारों दिशाओंकी प्रत्येक श्रेणी में सत्रह विमान हैं। दक्षिण श्रेणीके नौवें विमानमें शतार और उत्तर श्रेणी के नौवें विमानमें सहस्रार इन्द्र रहते हैं। इसके ऊपर आनत, प्राणत, आरण और अच्युत स्वर्ग हैं। इनमें छह पटल हैं। अन्तिम अच्युत पटलके मध्यमें अच्युत नामक इन्द्रक विमान है। इन्द्रक विमानसे चारों दिशाओं में चार विमानश्रेणियाँ हैं। प्रत्येक विमानश्रेणी में ग्यारह विमान हैं। इस पटलकी दक्षिण श्रेणीके छठवें विमानमें आरण और उत्तर श्रेणीके छठवें विमानमें अच्युत इन्द्र रहते हैं। इस प्रकार लोकानुयोग नामक ग्रन्थमें चौदह इन्द्र बतलाये हैं। श्रुतसागर आचार्यके मतसे तो बारह ही इन्द्र होते हैं। आदिके चार और अन्तके चार इन आठ स्वर्गों के आठ इन्द्र और मध्यके आठ स्वोंके चार इन्द्र अर्थात् ब्रह्म, लान्तव, शुक्र और शतार इस प्रकार सोलह स्वर्गों में बारह इन्द्र होते हैं। विमानोंकी संख्या--सौधर्म स्वर्ग में बत्तीस लाख, ऐशान स्वर्ग में अट्ठाईस लाख, सानत्कुमार स्वर्ग में बारह लाख, माहेन्द्र में आठ लाख, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तरमें चालीस लाख, लान्तव और कापिष्टमें पचास हजार, शुक्र और महाशुक्रमें चालीस हजार, शतार और सहस्रारमें छह हजार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत स्वर्गमें सात सौ विमान हैं। प्रथम तीन ग्रेवेयकों में एक सौ ग्यारह, मध्य के तीन वेयकों में एक सौ सात और ऊपर के तीन प्रैवेयकोंमें एकानवे विमान हैं। नव अनुदिश में नौ विमान हैं। सर्वार्थसिद्धि पटलमें पाँच विमान हैं जिनमें मध्यवर्ती विमानका नाम सर्वार्थसिद्धि है। पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशामें क्रमसे विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमान हैं। विमानोंका रंग-सौधर्म और ऐशान स्वर्गके विमानोंका रङ्ग श्वेत, पीला, हरा, लाल और काला है । सानत्कुमार और महेन्द्र स्वर्गमें विमानोंका रङ्ग श्वेत, पीला, हरा और लाल है । ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ट स्वर्ग में विमानोंका रंग श्वेत,पीला और लाल है। शुक्रसे अच्युत स्वर्ग पर्यन्त विमानोंका रंग श्वेत और पीला है । नव वेयक, नव अनुदिश और अनुत्तर विमानोंका रंग श्वेत ही है। सर्वार्थसिद्धि विमान परमशुक्ल है और इसका विस्तार जम्बूद्वीपके समान है । अन्य चार विमानोंका विस्तार असंख्यात करोड़ योजन है। उक्त त्रेसठ पटलोंका अन्तर भी असंख्यात करोड़ योजन है। मेरुसे ऊपर डेढ़ राजू पर्यन्त क्षेत्रमें सौधर्म और ऐशान स्वर्ग हैं। पुनः डेड़ राजु प्रमाण क्षेत्र में सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग हैं । ब्रह्मसे अच्युत स्वर्ग पर्यन्त दो दो स्वर्गोंकी ऊँचाई आधा राजू है । और ग्रैवेयकसे सिद्धशिला तक एक राजू ऊंचाई है । अर्ध्वलोकमें जितने विमान हैं सभीमें जिनमन्दिर हैं। ५२ For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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