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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०५ ४।९-१२] . चतुर्थ अध्याय सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग के देव और देवियाँ परस्पर में स्पर्शमात्रसे; ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ट स्वर्गके देव और देवियाँ एक दूसरेके रूपको देखनेसे; शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार स्वर्गके देव और देवियाँ परस्पर शब्दश्रवणसे और आनत, प्राणत, पारण और अच्युत स्वर्गके देव और देवियाँ मनमें एक दूसरेके स्मरणमात्रसे अधिक सुखका अनुभव करती हैं। परेऽप्रवीचाराः ॥६॥ नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश और पञ्चोत्तर विमानवासी देव कामसेवनसे रहित होते हैं। इन देवोंको कामसेवनकी इच्छा ही नहीं होती है। उनके तो सदा हर्ष और आनन्द रूप सुखका अनुभव रहता है । भवनवासियोंके भेदभवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमाराः॥१०॥ भवनवासी देवोंके असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार-ये दश भेद हैं। भवनों में रहने के कारण इन देवोंको भवनवासी कहते हैं। जो परस्परमें दूसरोंको लड़ाकर उनके प्राणोंको लेते हैं उनको असुरकुमार कहते हैं । ये तृतीय नरक तकके नारकियोंको दुःख पहुँचाते हैं । पर्वत या वृक्षोंपर रहनेवाले देव नागकुमार कहलाते हैं। जो विद्युत्के समान चमकते हैं वे विद्युत्कुमार हैं। जिनके पक्ष ( पंख ) शोभित होते हैं वे सुपर्णकुमार हैं। जो पाताल लोकसे क्रीड़ा करनेके लिये ऊपर आते हैं वे अग्निकुमार कहलाते हैं। तीर्थंकरके विहारमार्गको शुद्ध करनेवाले वातकुमार हैं । शब्द करनेवाले देवोंको स्तनितकुमार कहते हैं। समुद्रोंमें क्रीड़ा करनेवाले उदधिकुमार । और द्वीपोंमें क्रीड़ा करनेवाले द्वीपकुमार कहलाते हैं। दिशाओंमें क्रीड़ा करनेवालोंको दिक्कुमार कहते हैं । असुरकुमारों के प्रथम नरकके पङ्कबहुल भागमें और शेष भवनवासी देवोंके खरबहुल भागमें भवन हैं। व्यन्तरदेवोंके भेदव्यन्तराः किन्नरकिम्पुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः ॥ ११ ॥ व्यन्तर देवों के किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच-ये आठ भेद होते हैं। नाना देशों में निवास करने के कारण इनको व्यन्तर कहते हैं। जम्बूद्वीपके असंख्यात द्वीप-समुद्रको छोड़कर प्रथम नरकके खर भागमें राक्षसोंको छोड़कर अन्य सात प्रकारके व्यन्तर रहते हैं और पङ्कभागमें राक्षस रहते हैं । ज्योतिषो देवोंके भेदज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च ॥ १२॥ ज्योतिषी देवोंके सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारा ये पाँच भेद हैं। ज्योति (प्रकाश ) युक्त होने के कारण इनको ज्योतिषी कहते हैं। इस पृथ्वीसे सात सौ नब्बे योजनकी ऊँचाई पर ताराओं के विमान हैं । ताराओंसे For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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