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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [३३६ उग्रतप--पञ्चमीको, अष्टमीको और चतुर्दशीको उपवास करना और दो या तीन बार आहार न मिलने पर तीन, चार अथवा पाँच उपवास करना उग्रतप है। दीप्ततप-शरीरसे बारह सूर्यों जैसी कान्तिका निकलना दीप्ततप है। तप्ततप-तपे हुये लोहपिण्ड पर गिरी हुई जलकी बूंदकी तरह आहार ग्रहण करते हो आहारका पता न लगना अर्थात् आहारका पच जाना तप्ततप है। घोरगुणब्रह्मचारिता -सिंह, व्याघ्र आदि क्रूर प्राणियोंसे सेवित होना घोरगुणब्रह्मचारिता है। . घोरपराक्रमता-मुनियोंको देखकर भूत, प्रेत, राक्षस, शाकिनी आदिका डर जाना घोरपराक्रमता है। बलऋद्धिके तीन भेद हैं-मनोबल, वचनबल और कायबल । मनोबल–अन्तर्मुहूर्तमें सम्पूर्ण श्रुतको चिन्तन करनेकी सामर्थ्यका नाम मनोबल है। वचनबल-अन्तर्मुहूर्त में सम्पूर्ण श्रुतको पाठ करनेकी शक्तिका नाम वचनबल है । कायबल-एक मास, चार मास, छह मास और एक वर्ष तक भी कायोत्सर्ग करनेकी शक्ति होना अथवा अङ्गुलीके अग्रभागसे तीनों लोकोंको उठाकर दूसरी जगह रखनेकी सामर्थ्यका होना कायबल है। औषधऋद्धि आठ प्रकारकी है। जिन मुनियोंकी निम्न आठों बातोंके द्वारा प्राणियों के रोग नष्ट हो जाते हैं वे मुनि औषधऋद्धिके धारी होते हैं। १ विट (मल ) लेपन, २ मलका एकदेश छूना, ३ अपक्व आहारका स्पर्श, ४ सम्पूर्ण अङ्गोंके मलका स्पर्श, ५ निष्ठोवनका स्पर्श, ६ दन्त, केश, नख, मूत्र आदिका स्पर्श ७ कृपादृष्टि से अवलोकन ओर ८ कृपासे दाँतोंका दिखाना । रस ऋद्धिके छह भेद हैं-१ आस्यविष-किसी दृष्टिगत प्राणीको 'भर जाओ' ऐसा कहनेपर उस प्राणीका तत्क्षण ही मरण हो जाय-इस प्रकारकी सामर्थ्यका नाम आस्यविष अथवा वाग्विष है। २ दृष्टिविष-किसी क्रुद्ध मुनिके द्वारा किसी प्राणीके देखे जानेपर उस प्राणीका उसी समय मरण हो जाय इस प्रकारकी सामर्थ्यका नाम दृष्टिविष है। ३ क्षीरस्रावी-नीरस भोजन भी जिन मुनियोंके हाथमें आनेपर क्षीरके समान स्वादयुक्त हो जाता है, अथवा जिनके वचन क्षीरके समान संतोष देनेवाले होते हैं वे क्षीरस्रावी कहलाते हैं। ४ मध्वासावी-नीरस भोजन भी जिन मुनियोंके हाथमें आनेपर मधुके स्वादको देनेवाला हो जाता है और जिनके वचन श्रोताओंको मधुके समान लगते हैं वे मुनि मध्वास्रावी हैं। ५ सर्पिरास्रावी-नीरस भोजन भी जिनके हाथमें आनेपर घृतके स्वादयुक्त हो जाता है और जिनके वचन श्रोताओंको घृतके स्वाद जैसे लगते हैं वे मुनि सपिरास्रावी हैं। ६ अमृतास्रावी--जिनके हस्तगत भोजन अमृतके समान हो जाता है और जिनके वचन अमृत जैसे लगते हैं वे मुनि अमृतास्रावी हैं। क्षेत्र ऋद्धि के दो भेद हैं । अक्षोणमहानसऋद्धि और अक्षीणआलयऋद्धि । किसी मुनिको किसी घरमें भोजन करनेपर उस घर में चक्रवर्ती के परिवारको भोजन करनेपर भी अन्नकी कमी न होनेकी सामर्थ्यका नाम अक्षीण महानस ऋद्धि है। For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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