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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [ ३२७ सिंह, व्याघ्र आदिके भयको निवारण करनेके लिये लाठी आदि रखना सिखाना है। पाँचवे कुलकरकी आयु पल्यके लाख भागोंमें से एक भाग प्रमाण है । वह कल्पवृक्षोंकी सीमाको वचन द्वारा नियत करता है क्योंकि उसके कालमें कल्पवृक्ष कम हो जाते हैं और फल भी कम लगते हैं। छठवें कुलकरकी आयु पल्यके दश लाख भागों में से एक भाग प्रमाण है । वह गुल्म आदि चिन्होंसे कल्पवृक्षोंकी सीमाको नियत करता है क्योंकि उसके कालमें कल्पवृक्ष बहुत कम रह जाते हैं और फल भी अत्यल्प लगते हैं। सातवें कुलकरकी आयु पल्यके करोड़ भागोंमें से एक भाग प्रमाण है। वह शूरताके उपकरणोंका उपदेश और हाथी आदिपर सवारी करना सिखाता है । आठवें कुलकरकी आयु पल्यके दश करोड़ भागों में से एक भाग प्रमाण है । वह सन्तानके दर्शनसे उत्पन्न भयको दूर करता है । नवम कुलकरकी आयु पल्यके सौ करोड़ भागोंमें से एक भाग प्रमाण है । वह सन्तानको आशोर्वाद देना सिखाता है। दशम कुलकरकी आयु पल्यके हजार करोड़ भागों में से एक भाग प्रमाण है। वह बालकोंके रोने पर चन्द्रमा आदिके दर्शन तथा अन्य क्रीड़ाके उपाय बतलाता है । ग्यारहवें कुलकरकी आयु पल्यके हजार करोड़ भागोंमें से एक भाग प्रमाण है। उसके काल में युगल (पुरुष और स्त्री) अपनी सन्तानके साथ कुछ दिन तक जीवित रहता है । बारहवें कुलकर की आयु पल्यके लाख करोड़ भागों में से एक भाग प्रमाण है। वह जल को पार करने के लिये नौका आदि की रचना कराना सिखाता तथा पर्वत आदिपर चढ़ने और उतरने के लिये सीढ़ी आदिको बनवानेका उपाय बताता है। उसके काल में युगल अपनी सन्तानके साथ बहुत काल तक जीवित रहता है। मेघोंके अल्प होने के कारण वर्षा भी अल्प होती है। इस कारणसे छोटी छोटी नदियाँ और छोटे छोटे पर्वत भी हो जाते हैं । तेरहवें कुलकरकी आयु पल्यके दश लाख करोड़ भागों में से एक भाग प्रमाण है । वह जर/यु (गर्भजन्मसे उत्पन्न प्राणियों के जरायु होती है ) आदिके मलको दूर करना सिखाता है । चौदहवें कुलकरकी आयु पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण है । वह सन्तानके नाभिनाल को काटना सिखाता है। उसके काल में प्रचुर मेघ अधिक वर्षा करते हैं । बिना बोये धान्य पैदा होता है। वह धान्यको खानेका उपाय तथा अभक्ष्य औषधि और अभक्ष्य वृक्षोंका त्याग बतलाता है । पन्द्रहवाँ कुलकर तीर्थंकर होता है । सोलहवां कुलकर उसका पुत्र चक्रवर्ती होता है । इन दोनोंको आयु चौरासी लाख पूर्वकी होती है। ___सुपमसुषमा नामक चौथे कालके आदिमें मनुष्य विदेह क्षेत्रके मनुष्योंके समान पाँच सौ धनुष ऊँचे होते हैं। इस कालमें तेईस तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं और मुक्त भी होते हैं । ग्यारह चक्रवर्ती, नव बलभद्र,नव वासुदेव, नव प्रति वासुदेव और ग्यारह रुद्र भी इस कालमें उत्पन्न होते हैं। वासुदेवोंके कालमें नव नारद भी उत्पन्न होते हैं तथा य कलहप्रिय होनेके कारण नरक जाते हैं। चौथे कालके अन्त में मनुष्योंकी आयु एक सौ बीस वर्ष और शरीरकी ऊँचाई सात हाथ रह जाती है। दुःषमा नामक पश्चम कालके आदिमें मनुष्योंकी आयु एक सौ बीस वर्ष और शरीर की ऊँचाई सात हाथ होती है। और अन्त में आयु बीस वर्ष और शरीरकी ऊँचाई साढ़े तीन हाथ रह जाती है अतिदुःपमा नामक छठवें कालके आदि में मनुष्यों की आयु बीस वप होती है और अन्तमें आयु सोलह वर्ष और शरीरकी ऊँचाई एक हाथ रह जाती है। छठवें कालके अन्तमें प्रलय काल आता है । प्रलय कालमें सरस, विरस, तीक्ष्ण, रूक्ष, उष्ण, विष और क्षारमेघ क्रमसे सात सात दिन बरसते हैं । सम्पूर्ण आर्य खण्डमें प्रलय होने पर मनुष्योंके बहत्तर युगल शेष रह जाते हैं । चित्राभूमि निकल आती है। बराबर हो जाती है । इस For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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