SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृति का सम्यग्दर्शन ४१ अर्थात् सभी पुराना अच्छा और सभी नया बुरा नहीं हो सकता। समझदार परीक्षा करके उनमेंसे समीचीनको ग्रहण करते हैं। मूढ़ ही दूसरोंके बहकावेमें आता है। । अतः इस प्राचीनताके मोह और नवीनताके अनादरको छोड़कर समीचीनताकी ओर दुष्टि रखनी चाहिए तभी हम नूतन पीढ़ीकी मतिको समीचीन बना सकेंगे । इस प्राचीनताके मोहने असंख्य अन्धविश्वासों, कुरूढ़ियों, निरर्थक परम्पराओं और अनर्थक कुलाम्नायोंको जन्म देकर मानवकी सहजबद्धिको अनन्त भ्रमोंमें डाल दिया है। अतः इसका सम्यग्दर्शन प्राप्तकर जीवनको समीक्षापूर्ण बनाना चाहिए । संस्कृति का सम्यग्दर्शनमानवजातिका पतन-आत्म स्वरूपका अज्ञान ही मानवजातिके पतनका मुख्य कारण है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यह अपने आसपासके मनुष्योंको प्रभावित करता है । बच्चा जब उत्पन्न होता है तो बहुत कम संस्कारोंको लेकर आता है। उत्पत्तिकी बात जाने दीजिये । यह आत्मा जब एक देहको छोड़कर दूसरा शरीर धारण करने के लिए किसी स्त्रीके गर्भ में पहुँचता है तो बहुत कम संस्कारोंको लेकर जाता है। पूर्व जन्मकी यावत् शक्तियाँ उसी पर्यायके साथ समाप्त हो जाती है, कुछ सूक्ष्म संस्कार ही जन्मान्तर तक जाते हैं । उस समय उसका आत्मा सूक्ष्म कार्मण शरीरके साथ रहता है । वह जिस स्त्रीके गर्भ में पहुंचता है वहाँ प्राप्त वीर्यकण और रजःकणसे बने हुए कललपिण्डमें विकसित होने लगता है। जैसे संस्कार उस रजःकण और वीर्यकणमें होंगे उनके अनुसार तथा माताके आहार-विहार-विचारोंके अनुकूल वह बढ़ने लगता है। वह तो कोमल मोमके समान है जैसा सांचा मिल जायगा वैसा ढल जायगा। अतः उसका ९९ प्रतिशत विकास मातापिताके संस्कारोंके अनुसार होता है। यदि उनमें कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी है तो वह बच्चे में अवश्य आजायगी। जन्म लेनेके बाद वह मां बापके शब्दोंको सुनता है उनकी क्रियाओंको देखता है । आसपासके लोगोंके व्यवहारके संस्कार उसपर क्रमशः पड़ते जाते हैं। एक ब्राह्मणसे उत्पन्न बालकको जन्मते ही यदि किसी मुसलमानके यहां पालनेको रख दिया जाय तो उसमें सलाम दुआ करना, मांस खाना, उसी पात्रसे पानी पीना उसीसे टट्टी जाना आदि सभी बातें मुसलमानों जैगी होने लगती हैं। यदि वह किसी भेड़ियेकी मांदमें चला जाता है तो वह चौपायोंकी तरह चलने लगता है, कपड़ा पहिनना भी उसे नहीं सुहाता, नाखूनरो दूसरोंको नोचता है, शरीरके आकारके सिवाय सारी बातें भेड़ियों जैसी हो जाती हैं। यदि किसी चाण्डालका बालक ब्राह्मणके यहां पले तो उसमें बहुत कुछ संस्कार ब्राह्मणोंके आ जाते हैं। हां, नौ माह तक चाण्डालीके शरीरसे जो संस्कार उसमें पड़े हैं। वे कभी कभी उद्बुद्ध होकर उसके चाण्डालत्वका परिचय करा देते हैं। तात्पर्य यह कि मानवजाति की नुतन पीढ़ी के लिए बहुत कुछ मां बाप उत्तरदायी है। उनकी बुरी आदतें और खोटे विचार नवीन पीढ़ीम अपना घर बना लेते हैं। आज जगत्म सब चिल्ला रहे हैं कि-'संस्कृतिकी रक्षा करो, संस्कृति डूबी, संस्कृति डूबी उसे बचाओ।' इस संस्कृति नामपर उसके अजायबघरमें अनेक प्रकारकी बेहूदगी भरी हुई है । कल्पित ऊँच-नीच भाव, अमुकप्रकारके आचार-विचार, रहनसहन, बोलना-चालना, उठना बैठना आदि सभी शामिल हैं। इस तरह जब चारों ओर से संस्कृतिरक्षाकी आवाज आ रही है और यह उचित भी है, तो सबसे पहिले संस्कृतिकी ही परीक्षा होना जरूरी है। कहीं संस्कृतिके नामपर मानवजाति के विनाशके साधनोंका पोषण तो नहीं किया जा रहा है । ब्रिटेनमें अंग्रेज जाति यह प्रचार करती रही कि गोरी जातिको ईश्वरने काली जातिपर शासन करनेकेलिए ही भूतल पर भेजा है और इसी कुसंस्कृतिका प्रचार करके वे भारतीयोंपर शासन करते रहे। यह तो हम लोगोंने उनके ईश्वरको बाध्य किया कि वह अब उनसे कह दे कि अब शासन करना छोड़ दो और उनने बाध्य होकर छोड़ दिया। जर्मनीने अपने नवयुवकोंमें इस संस्कृतिका प्रचार किया था कि-जर्मन एक आर्य रक्त है। वह सर्वोत्तम है । वह यहूदियोंके विनाशकेलिए है और जगतमें शासन For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy