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________________ १. १३.] मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध ये शब्द एकार्थ प्रस्तुत सूत्र में जो मति, स्मृति आदि शब्द कहे गये हैं ये मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम हैं या इन शब्दों द्वारा मतिज्ञान के भेद कहे गये है ? यह एक शंका है जिसके समुचित उत्तर में ही इस सूत्र की व्याख्या सन्निहित है, इसलिये सर्वप्रथम इसी पर विचार किया जाता है आगम ग्रन्थों में ज्ञान के पाँच भेद बतलाते हुए मतिज्ञान इस नाम के स्थान में आभिनिबोधिक ज्ञान यह नाम आया है, किन्तु धीरे धीरे मतिज्ञान शब्द रूढ़ होने लगा। सर्वप्रथम आचाये कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में मतिज्ञान शब्द पाया जाता है। इसके बाद तत्त्वार्थसूत्र में यह नाम आया है। इससे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि आगम ग्रन्थों में श्राभिनिबोधिक ज्ञान का जो अर्थ इष्ट है तत्त्वार्थसूत्र में वही अर्थ मतिज्ञान नाही शब्द से लिया गया है। अब हमें यह देखना है कि वाची हैं इसका आगम में आभिनिबोधिक ज्ञान का क्या अर्थ स्वीकृत " है ? वास्तव में देखा जाय तो मूल ग्रन्थों में किसी भी शब्द का लाक्षणिक अर्थ नहीं पाया जाता । तथापि वहाँ जो इस ज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा प्रमुग्व तीन सौ छत्तीस भेद किये हैं इससे स्पष्ट हो जाता है कि बहुत प्राचीन काल से आभिनिबोधिक ज्ञान का अर्थ 'जो ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता से वर्तमान विषय को जानता है वह आभिनिबोधिक ज्ञान है ऐसा होता आया है। तत्त्वार्थसूत्र में भी मतिज्ञान के वे ही तीन सौ छत्तीस भेद गिनाये हैं, अतः इससे जाना जाता है कि यहाँ भी मतिज्ञान का वही अर्थ विवक्षित है जो आगमों में आभिनिबोधिक ज्ञान का लिया गया है । इस प्रकार मतिज्ञान के केवल वर्तमानग्राही
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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