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सम्यग्दर्शन का लक्षण रूप हैं । तथापि प्रत्येक को सर्वथा आत्मारूप मान लेने पर ये आत्मा के धर्म नहीं ठहरते, इसलिये ये प्रत्येक आत्मारूप नहीं भी हैं। इस प्रकार विचार करने पर आत्मा से इन दर्शन आदि का कथंचित् अभेद
और कथंचित् भेद प्राप्त होता है। जब अभेद विवक्षित होता है तब कत साधन द्वारा दर्शन, ज्ञान और चारित्र शब्द की सिद्धि होती है। यथा जो देखता है वह दर्शन, जो जानता है वह ज्ञान और जो आचरण करता है वह चारित्र । तथा जब आत्मा से दर्शन आदि में भेद विवक्षित होता है तब करण साधन या भावसाधन द्वारा इनकी सिद्धि होती है । यथा--जिसके द्वारा देखा जाता है वह दर्शन, जिसके द्वारा जाना जाता है वह ज्ञान और जिसके द्वारा चयों की जाती है वह चारित्र । या देखने का भाव दर्शन, जानने का भाव ज्ञान और चर्यारूप भाव चारित्र।
सूत्र में जो 'मोक्षमार्गः' ऐसा एक वचन दिया है सो इससे यह सूचित होता है कि मोक्ष के तीन मार्ग नहीं हैं किन्तु सम्यग्दर्शन, मोक्षमार्गके एकत्व सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीन का
एकत्व मोक्ष का मार्ग है। 'मोक्षमार्ग' का अर्थ है
आत्मा की शुद्धि का मार्ग। इन तीनों के प्राप्त हो जाने पर अात्मा द्रव्य कर्म, भाव कर्म, और नोकर्म से सर्वथा रहित हो जाता है इसलिये ये तीनों मिलकर मोक्षमार्ग है ऐसा सिद्ध होता है। १।
सम्यग्दर्शन का लक्षणतत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥ २ ॥ तत्त्वरूप अर्थो का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
दर्शन शब्द में हश् धातु है जिसका अर्थ देखना है । पर मोक्ष मार्ग का प्रकरण होने से यहाँ उसका अर्थ श्रद्धान करना लिया गया है।