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९. ४७] आठ बातों द्वारा निर्ग्रन्थों का विशेष वर्णन ४५१
लिङ्ग द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार का है। भाव लिंग की पनि अपेक्षा पाँच ही निग्रन्थ होते हैं अर्थात् सभी के
सर्वविरति रूप परिणाम होते हैं किन्तु द्रव्यलिंग सबका एकसा नहीं होता, किसी के पीछी कलएडलु होता है और किसी के नहीं होता। - पुलाक के तीन शुभ लेश्याएँ होती हैं। वकुश और प्रतिसेवना कुशील के छहों लेश्याएँ होती हैं। कषायकुशील के अन्त की चार
. ६ लेश्या
लेश्याएँ होती हैं। उसमें भी सूक्ष्मसाम्पसयिक कपा
यकुशील के और शेप निम्रन्थों के एक शुक्ल लेश्या ही होती है । स्नातकों में अयोगियों के कोई लेश्या नहीं होती। उत्कृष्ट से पुलाकका उपपाद सहस्रार कल्प में उत्कृष्ट स्थितिवाले - देवों में होता है। वकुश और प्रतिसेवनाकुशील का उप
पाद आरण और अच्युत कल्प में बाहेस सागरोपम प्रमाण स्थितिवाले देवों में होता है । तथा कषायकुशील और निर्ग्रन्थों का उपपाद सर्वार्थसिद्धि में तेतीस सागर की स्थितिवाले देवों में होता है। जघन्य से इन सबका उपपाद सौधर्मकल्प में दो सागरोपम प्रमाण स्थितिवाले देवों में होता है। किन्तु स्नातक तो नियम से निर्वाण जाते हैं। इनका अन्यत्र उपपाद नहीं होता।
स्थान शब्द से यहाँ संयमस्थान लिये गये हैं। पूर्ण विरति रूप परिणाम का नाम संयम है । वह सबका एक-सा नहीं होता । किसी का
. कषाय मिश्रित होता है और किसी का कषाय रहित ।
- यह दोनों प्रकार का संयम कषाय और पालम्बन के भेद से असंख्यात प्रकार का होता है। इससे संयमस्थानों के असंख्यात भेद हो जाते हैं ॥ ४७ ।।
७ उपपाद
८स्थान