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४३० तत्त्वार्थसूत्र
[९. १८. इन बाईस परीषहों पर विजय पाने से कर्मों का संवर होता है।। ८-१७॥
चरित्र के भेदसामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातमिति चारित्रम् ॥ १८ ॥
सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात यह पाँच प्रकार का चारित्र है ॥१८॥
संयत की कर्मों के निवारण करने के लिए जो अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग प्रवृत्ति होती है वह चारित्र है। यह परिणामों की विशुद्धि के तारतम्य की अपेक्षा से और निमित्तभेद से पाँच प्रकार का बतलाया है। विशेष खुलासा इस प्रकार है
सामायिक में समय शब्द का अर्थ है सम्यक्त्व, ज्ञान, संयम और तप इनके साथ ऐक्य स्थापित करना। इस प्रकार आत्मपरिणामों की
_ वृत्ति बनाये रखना ही सामायिक है। तात्पर्य यह है सामयिक चारित्र. कि राग और द्वेष का निरोध करके सब आवश्यक कर्तव्यों में समताभाव बनाये रखना ही सामायिक है। इसके नियतकाल और अनियतकाल ऐसे दो भेद हैं। जिनका समय निश्चित है ऐसे स्वाध्याय आदि नियतकाल सामायिक है और जिनका समय निश्चित नहीं है ऐसे ईर्यापथ आदि अनियतकाल सामायिक है। जैसे अहिंसाव्रत सब व्रतों का मूल है वैसे ही सामायिक चारित्र सब चारित्रों का मूल है। "मैं सर्व सावद्ययोगसे विरत हूँ" इस एक व्रत में समावेश हो जाने से एक सामायिक व्रत माना है और वही एक व्रत पाँच या अनेक भेद रूप से विवक्षित होने के कारण छेदोपस्थाना चारित्र कहलाता है।