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विषय चौदह पिण्ड प्रकृतियां आठ प्रत्येक प्रकृतियां
दशक और स्थावर दशक गोत्रकर्मकी दो प्रकृतियां अन्तराय कर्म की प्रकृतियां स्थितिबन्ध का वर्णन अनुभागबन्ध का वर्णन
[ १५. ]
अनुभव का कारण अनुभव की द्विधा प्रकृत्ति
प्रकृतियों के नामानुरूप उनका अनुभव फलदान के बाद कर्म की दशा
प्रदेशबन्ध का वर्णन
जीवक परतन्त्रता का कारण कर्म है।
कर्म का स्वरूप
कर्म की विविध अवस्थाए
पुण्य और पाप प्रकृतियों का विभाग
४२ पुण्य प्रकृतियां
८२ पाप प्रकृतियां
संवर का स्वरूप संवर का उपाय
गुप्ति का स्वरूप समिति के भेद
नवां अध्याय
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