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________________ तत्त्वार्थसूत्र [८.५-१३. उदय शरीरके अपने ही अवयवों से अपना घात होने में निमित्त है वह . उपघात नामकर्म है। अथवा जिस नामकर्म के उदय पाठ प्रत्येक से जीव अपना घात करने के लिये विप श्रादि लाता प्रकृतियाँ है वह उपघात नामकर्म है। जिस कर्म का उदय शरीर में ऐसे अवयवों या पुद्गलों के निर्माण में निमित्त है जिससे दूसरे का घात हो वह परघात नामकर्म है। जिस नामकर्म का उदय जीव को श्वासोच्छ्रास के लेने में निमित्त है वह उच्छ्रास नामकर्म है। अनुष्ण शरीर में उष्ण प्रकाश के होने में जो कर्म निमित्त है वह आतष नामकर्म है। जिस कर्म का उदय अनुष्ण शरीर में शीत प्रकाश के होने में निमित्त है वह उद्योत नामकर्म है। जिस नामकर्म का उदय शरीर में प्राङ्गोपाङ्गों के यथास्थान होने में निमित्त है वह निर्माण नामकर्म है । जिस नामकर्म का उद्य जीव के तीर्थकर होने में निमित्त है वह तीर्थकरत्व नामकर्म है। १,२-जिस कर्मका उदय जीव को त्रसभावके प्राप्ति कराने में निमित्त है वह त्रसनाम है। जिस कर्मका उदय जीव को स्थावर भावके प्राप्त कराने में निमित्त है वह स्थावर नाम है । ३,४-जिस कर्मका उदय जीवके बादर होने में निमित्त है वह बादर पाप नाम है। जिस कर्मका उदय जीव के सूक्ष्म होनेमें निमित्त है वह सूक्ष्म नामकर्म है। जिनका निवास आधारके बिना नहीं पाया जाता वे बादर हैं और जिन्हें आधारको आवश्यकता नहीं पड़ती वे सूक्ष्म हैं। ५,६-जिसका उदय प्राणीयोंको अपने अपने योग्य पर्याप्तियोंके पूरा करने में निमित्त है वह पर्याप्त नामकर्म है। जिसका उदय अपने अपने योग्य पर्याप्तियोंको पूर्ण न कर सकनेमें निमित्त है वह अपर्याप्त नामकर्म है । ७,८-जिसका उदय प्रत्येक जीवको अलग अलग शरीर प्राप्त करानेमें निमित्त है वह प्रत्येक नाम कर्म है और जिसका उदय अनन्त जीवोंको एक साधारण शरीर प्राप्त करानेमें निमित्त है. त्रिसद स्थावरद
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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