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तत्त्वार्थसूत्र
[८. ५-१३. केसे कहा जा सकता है। यह तो चोरी है। अतः चोरी के भाव इस धन प्राप्ति में कारण हुए न कि साता का उदय ।
शंका-दो आदमी एक साथ एकसा व्यवसाय करते हैं फिर क्या कारण है कि एक को लाभ होता है और दूसरे को हानि ? ।
समाधान-व्यापार करने में अपनी अपनी योग्यता और उस समय की परिस्थिति आदि इसका कारण है पाप पुण्य नहीं। संयुक्त व्यापार में एक को हानि और दूसरे को लाभ हो तो कदाचित् हानि लाभ पाप पुण्य का फल माना भी जाय। पर ऐसा होता नहीं, अतः हानि लाभ को पाप पुण्य का फल मानना किसी भी हालत में उचित नहीं है।
शंका-यदि बाह्य सामग्री का लाभालाभ पुण्य पाप का फल नहीं है तो फिर एक गरीब और दूसरा श्रीमान् क्यों होता है ? ___ समाधान-एक का गरीब होना और दूसरे का श्रीमान् होना यह व्यवस्था का फल है पुण्य पाप का नहीं। जिन देशों में पंजीवादी व्यवस्था है और व्यक्तिगत संपत्ति के जोड़ने की कोई मर्यादा नहीं वहाँ अपनी अपनी योग्यता व साधनों के अनुसार लोग उसका संचय करते हैं
और इसी व्यवस्था के अनुसार गरीब और अमीर इन वर्गों की सृष्टि हुआ करती है। गरीब और अमीर इनको पाप पुण्य का फल मानना किसी भी हालत में उचित नहीं है। रूस ने बहुत कुछ अंशों में इस व्यवस्था को तोड़ दिया है इसलिये वहाँ इस प्रकार का भेद नहीं दिखाई देता है फिर भी वहाँ पुण्य और पाप तो है ही। सचमुच में पुण्य और पाप तो वह है जो इन बाह्य व्यवस्थाओं के परे हैं और वह है आध्यात्मिक । जैन कर्मशास्त्र ऐसे ही पुण्य पाप का निर्देश करता है।
शंका-यदि बाह्य सामग्री का लाभालाभ पुण्य पाप का फल नहीं है तो सिद्ध जीवों को इसकी प्राप्ति क्यों नहीं होती ?