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तत्त्वार्थसूत्र [७. ३८-३९, भक्ति, श्रद्धा, सत्त्व, तुष्टि, ज्ञान, क्षमा और अलौल्य ये दाता के दाता की विशेषता र
- सात गुण हैं। जितने अंश में ये दाता में विद्यमान
" होंगे, उससे दाता का उतना ही लाभ है। इसके अतिरिक्त दाता में असूया या तिरस्कार का भाव न होना भी आवश्यक है। तथा दान देने के बाद विषाद न करना और अधिक जरूरी है, क्योंकि ऐसा करने से इसके निमित्त से तमाम संचित सद्गुणों का नाश हो जाता है।
पान के तीन भेद हैं उत्तम, मध्यम और जघन्य । उत्तम पात्र मुनि पात्र की विशेषता
हैं। मध्यम पात्र श्रावक हैं और अबती सम्यग्दृष्टि
" जघन्य पात्र हैं। इस प्रकार ये विधि, द्रव्य, दाता और पात्र हैं। ये जैसे होते हैं उनके अनुसार दान के फल में विशेषता आती है। कारण स्पष्ट है, इसलिये इन सबकी सम्हाल करना उचित है॥ ३८-३६ ॥