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३२४ तत्त्वार्थसूत्र
[७. १४. शंका-इसका क्या कारण है ?
समाधान-बात यह है कि केवल कठोर वचन बोलना ही असत्य नहीं है किन्तु जो वचन प्रमत्तयोग से बोला जाता है वह असत्य है । प्रमत्तयोग से किसी भी प्रकार का वचन क्यों न बोला गया हो वह सबका सब असत्य है और प्रमाद के बिना बोला गया सब वचन सत्य है। यद्यपि गुरु आदि कठोर वचन बोलते हैं परन्तु उनके वैसा वचन प्रयोग करने में प्रमाद कारण नहीं है इसलिये ऐसे वचन को असत्य नहीं माना जा सकता है।
शंका-राजकर्मचारियों में अनाचार के फैल जाने से अपने बचाव के लिये जनता को जो असत्य बोलना पड़ता है उसका अन्तर्भाव इस असत्य में होता है क्या ?
समाधान-अवश्य होता है।
शंका-यदि ऐसा है तो असत्य दोष से कोई भी नहीं बच सकता है ?
समाधान-यह ख्याल गलत है कि असत्य दोष से कोई भी नहीं बच सकता है, ऐसे अवसरों पर मिलकर उस व्यवस्था को ही बदल देना चाहिये जिससे जीवन में असत् प्रवृत्ति का संचार होता हो। भले ही इसके लिये अधिक से अधिक त्याग करना पड़े परन्तु समाज में और राष्ट्र में सदाचार और सत्प्रवृत्ति को जीवित रखने के लिये ऐसा किया जाना आवश्यक है। अन्यथा सत्य का ढिंढोरा पीटना ढकोसला मात्र होगा।
शंका-क्या वर्तमान आर्थिक व्यवस्था के चालू रहते हुए सत्या वचन का पाला जाना सम्भव है ?
समाधान-आर्थिक व्यवस्था किसी भी प्रकार की क्यों न हो। वह बाह्य आलम्बन मात्र है। यहाँ तो अन्तरंग कारणों पर विचार करना है। अन्तरंग से उन कारणों का त्याग होना चाहिये जिनसे