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________________ ७. ३-८.] व्रतों की भावनायें ३१३ इस प्रकार ये पाँच अचौर्यव्रत की भावनायें हैं। जिन कथाओं के सुनने और बाचने आदि से स्त्रीविषयक अनुराग जागृत हो ऐसी कथाओं के सुनने और बाचने आदि का त्याग करना स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग है। स्त्रियों के मुख, आँख, कुच और कटि आदि सुन्दर अङ्गों को देखने से काम भाव जागृत होता है, इसलिये साधु को एक तो स्त्रियों के सम्पर्क से अपने को बचाना चाहिये, दूसरे यदि वे दर्शनादिक को आवें तो नीची दृष्टि रखने का अभ्यास करना चाहिये और इच्छापूर्वक उनकी ओर नहीं देखना चाहिये, यह तन्मनोहराङ्गनिरीक्षणत्याग है। गृहस्थ अवस्था में विविध प्रकार के भोग भोगे रहते हैं उनके स्मरण करने से कामवासना बढ़ती है, इसलिये उनका भूलकर भी स्मरण नहीं करना पूर्वरतानुस्मरणत्याग है। गरिष्ठ और प्रिय खानपान का त्याग करना वृष्येष्टरसत्याग है। तथा किसी भी प्रकार का अपने शरीर का संस्कार नहीं करना जिससे स्वपर के मन में आसक्ति पैदा हो सकती हो स्वशरीरसंस्कारत्याग है। इस प्रकार ये ब्रह्मचर्यव्रत की पाँच भावनायें हैं। ___ संसार में सब प्रकार के विषय विद्यमान हैं कुछ मनोज्ञ और कुछ अमनोज्ञ । जो मन को प्रिय लगें वे मनोज्ञ विषय हैं और जो मन को प्रिय न लगें वे अमनोज्ञ विषय हैं। मनोज्ञ विषयों के प्राप्त होने से राग और अमनोज्ञ विषयों के प्राप्त होने से द्वेष बढता है। यदि मनोज्ञ : विषयों में राग न किया जाय और अमनोज्ञ विषयों में द्वेष न किया जाय तो उनके सञ्चय और त्याग की भावना हो जागृत न हो और इस प्रकार अपरिग्रहव्रत की रक्षा होती रहे। इसी से मनोज्ञामनोज्ञस्पर्शरागद्वेपवर्जन, मनोज्ञामनोज्ञरसरागद्वेषवर्जन, मनोज्ञामनोज्ञगन्धरागद्वेषवर्जन, मनोज्ञामनोज्ञवर्णरागद्वेषवर्जन और मनोज्ञामनोज्ञशब्दरागद्वेषवर्जन ये अपरिग्रह व्रत की पाँच भावनायें बतलाई हैं। .. ये प्रत्येक व्रत की पाँच पाँच भावनायें महाव्रत की अपेक्षा बतलाई
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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