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________________ ५. ३४-३६.] बन्ध के सामान्य नियम के अपवाद होती उनका बन्ध हो सकता है। परन्तु इसमें भी अपवाद है जो अगले सूत्र में बतलाया गया है । इसके अनुसार मध्यम या उत्कृष्ट शक्त्यंश. वाले परमाणुओं का भी बन्ध नहीं हो सकता । इनमें यद्यपि बंधने. की योग्यता तो है पर ये समान शक्त्यंशवाले परमाणुओं के साथ बन्ध को नहीं प्राप्त होते इतना मात्र इसका तात्पर्य है। इस सूत्र में सदृश पद और है । इससे यह अर्थ फलित होता है कि असमान शक्त्यंशवाले सदृश परमाणुओं का और समान शक्त्यंशवाले विसदृश परमाणुओं का बन्ध हो सकता है जो इष्ट नहीं है इसलिये तीसरे सूत्र द्वारा बन्ध की मर्यादा निश्चित की गई है। इस सूत्र में यह बतलाया गया है कि दो शक्त्यंश अधिक होने पर एक पुद्गल का दूसरे पुद्गल से बन्ध हो सकता है। उदाहरणार्थ एक परमाणु में स्निग्ध या रूक्ष गुण के दो शक्त्यंश हैं और दूसरे परमाणु में चार शक्त्यंश हैं तो इन दोनों परमाणुओं का बन्ध हो सकता है। एक परमाणु में स्निग्ध या रूक्ष गुण के तीन शक्त्यंश हैं. और दूसरे परमाणु में पाँच शक्त्यंश हैं तो इन दो परमाणुओं का भी बन्ध हो सकता है । हर हालत में बंधनेवाले पुद्गलों में दो शक्त्यशों का अन्तर होना चाहिये । इससे न्यून या अधिक अन्तर के होने पर बन्ध नहीं होता। उदाहरणार्थ-एक परमाणु में स्निग्ध या रूक्ष गुण के दो शक्त्यंश हैं और दूसरे परमाणु में तीन या पाँच शक्त्यंश हैं तो इनका बन्ध नहीं हो सकता। परमाणुओं की बन्ध योग्यता सर्वत्र द्वयधिकता के नियमानुसार मानी गई है। वन्ध सदृश और विसदृश दोनों प्रकार के पुद्गलों का परस्पर में होता है। सदृश का अर्थ समानजातीय और विसदृश का अर्थ असमानजातीय है। एक रूक्ष पुद्गल के प्रति दूसरा रूक्ष पुद्गल समानजातीय है और स्निग्ध पुद्गल असमानजातीय है। इसी प्रकार एक' स्निग्ध पुद्गल के प्रति दूसरा स्निग्ध पुद्गल समानजातीय है और
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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