SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. २८.] अचाक्षुष स्कन्ध के चाक्षुपबनने में हेतु इस प्रकार स्कन्धों की उत्पत्ति कितने प्रकार से होती है इसका विवेचन किया ॥२६॥ अणु की उत्पत्ति केवल भेद से बतलाई है इसका कारण यह है कि अणु पुद्गल द्रव्य की स्वाभाविक अवस्था है इसलिये उसकी उत्पत्ति संघात से नहीं हो सकती, क्योंकि संघात में दो या दो से अधिक परमाणुओं का सम्बन्ध विवक्षित है। षटखण्डागम में भी अणु वर्गणा की उत्पत्ति इसीप्रकार से बतलाई है ।। २७ ।। अचाक्षुप स्कन्ध के चाक्षुप बनने में हेतुभेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः ॥ २८ ॥ अचाक्षुष स्कन्ध भेद और सङ्घात से चाक्षुष होता है। पुद्गलाणु का तो चक्षु से ग्रहण होता ही नहीं । स्कन्धों में भी कोई स्कन्ध अचाक्षुष होता है और कोई चाक्षुष। प्रस्तुत सूत्र में जो स्कन्ध अचाक्षुष अर्थात् चक्षु इन्द्रिय से अग्राह्य है वह चाक्षुष केसे हो सकता है इसका विचार किया गया है। जो स्कन्ध पहले सूक्ष्म होने से अचालुष है वह अपनी सूक्ष्मता का त्याग कर यदि स्थूल हो जाय तो चाक्षुष हो सकता है पर यह क्रिया न तो केवल भेद से ही सम्भव है, क्योंकि अचाक्षुष स्कन्ध में भेद के हो जाने पर भी उसकी अचाक्षुषता ज्यों की त्यों बनी रहती है और न केवल सङ्घात से ही सम्भव है, किन्तु इसके लिये भेद और सङ्घात दोनों की आवश्यकता है। खुलासा इस प्रकार ऐसे दो स्कन्ध लो जिनमें एक अचाक्षुष है और दूसरा चाक्षुप । उनमें जो अचाक्षुष है वह चाक्षुष तभी हो सकता है जब वह चाक्षुप स्कन्ध के साथ एकत्व को प्राप्त होकर स्थूलता को प्राप्त कर ले। किन्तु समग्र अचाक्षुष स्कन्ध चाक्षुष स्कन्ध के साथ एकत्व को नहीं प्राप्त हो सकता, इसलिये अचाक्षुष स्कन्ध का भेद होकर उसका कुछ हिस्सा
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy