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५. १९-२०.] पुद्गल द्रव्य क कार्यों पर प्रकाश २२१ आकाशका दोष नहीं है किन्तु यह वहां स्थित मूर्त पदार्थ का दोष है जो अपनी स्थूलता के कारण अन्य स्थूल पदार्थ को वहां ठहरने में रुकावट खड़ा करता है। आकाश का काम किसी की स्थूलता या सूक्ष्मताको नष्ट करना नहीं है। उसका तो काम इतना ही है कि सब पदार्थों को अपनी अपनी योग्यतानुसार स्थान मिले और इसी काम की पूर्ति वह करता है इसलिये आकाश का अवकाश देना कार्य माना गया है। स्थूल होने से जो दो पदार्थ आपसमें टकराते हैं यह उनकी अपनी विशेषता है और इसी विशेषता के कारण वे एक क्षेत्र में स्थान नहीं पाते । यदि वे अपनी इस विशेषता का त्याग कर सूक्ष्म भावको प्राप्त हो जाय तो वे भी एक क्षेत्र में स्थान पा सकते हैं। आकाश का काम तो स्थान देना है और वह सबके लिये समान रूपसे उन्मुक्त है। जो जहां अवकाश चाहे पा सकता है। किन्तु विवक्षित क्षेत्र में स्थित अन्य द्रव्य को स्थूलता के कारण यदि दूसरा द्रव्य वहां अवकाश पाने से रुकता है तो यह दोष आकाश का नहीं है । ऐसा यहां समझना चाहिये ॥ १८॥
पुद्गल द्रव्य के कार्यों पर प्रकाशशरीरवाङ्मनःप्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥ १९ ॥ सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ॥ २० ॥
शरीर, वचन, मन उच्छवास और निःश्वास ये पुद्गलों के उपकार हैं।
तथा सुख, दुःख, जीवित और मरण ये भी पुद्गलों के उपकार हैं।
संसार का जीवन सम्बन्धी समग्र व्यवहार पुद्गलावलम्बी है। पृथिवी, घर, भोजन, पानी वस्त्र और वनस्पति आदि सब ही पौद्गलिक हैं और जीवन में इनका निरन्तर उपयोग होता है। एक तरफ से