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________________ ४. २८.] भवनासियों की उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन १६१ औपपादिक और मनुष्यों के सिवा शेप सब संसारी जीव तिर्यंचयोनिवाले हैं। तिर्यंचों का अनेक जगह वर्णन आ चुका है पर वहाँ यह नहीं बतलाया गया कि तियच कौन हैं। इस सूत्र द्वारा यही बतलाया गया है । उपपाद जन्म से देव और नारक पैदा होते हैं यह पहले बतला आये हैं। आर्य और म्लेच्छ इस प्रकार मनुष्य दो प्रकार के हैं यह भी पहले बतला आये हैं। इन तीन गतियों के प्राणियों को छोड़कर जितने संसारी जीव शेष बचते हैं वे सब तिर्यंच हैं। ये देव, नारक और मनुष्यों के समान केवल पञ्चेन्द्रिय न होकर एकेन्द्रिय आदि के भेद से पाँच प्रकार के होते हैं । ये बादर और सूक्ष्म दो प्रकार के होते हैं। इनमें से बादर तियच आधार से ही रहते हैं और सूक्ष्म तिर्यच सब लोक में पाये जाते हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि ये भेद एकेन्द्रिय तियचों के ही हैं। दो इन्द्रिय से लेकर शेष सब तिर्यंच बादर ही होते हैं । २७। __ भवनवासियों की उत्कृष्ट स्थिति का वर्णनस्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमा - होनमिता । २८ । असुरकुमार, नागकुमार, सुपणकुमार, द्वीपकुमार और शेष भवनवासियों की स्थिति क्रम से एक सागरोपम, तीन, ढाई, दो और डेढ़ पल्योपम है। ___ आगे सेंतीसवें सूत्र में सब भवनवासियों की जघन्य स्थिति बतलाई है इसलिए इस स्थिति को उत्कृष्ट समझना चाहिए। यद्यपि यह स्थिति सामान्य से असुरकुमार आदि अवान्तर भेदों को बतलाई है तो भी यह उस अवान्तर भेद में दक्षिण दिशा के इन्द्र की जाननी चाहिए। अर्थात् असुरकुमारों के दक्षिण दिशा के इन्द्र की स्थिति १३
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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