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तत्त्वार्थसूत्र [४. २०.-२१ करते हैं उतना ऊपर के देव नहीं। साधारणतया सोलहवें स्वर्ग तक के देव तीसरे नरक तक जाते हैं। तीसरे नरक से आगे न कोई देव गया है और न कोई देव जायगा ऐसा नियम है।
देवों का शरीर वैक्रियिक होता है इसलिये वे अपनी इच्छानुसार उसे छोटा बड़ा जैसा चाहें कर सकते हैं। तीर्थंकर के जन्मोत्सव के
समय जो एक लाख योजन के हाथी का कथन प्राता
र है सो वह वैक्रियिक ही रहता है । तब भी नीचे नीचे के देवों के शरीर की ऊँचाई से ऊपर ऊपर के देवों की ऊँचाई घटती गई है । शरीर की ऊँचाई पहले दूसरे स्वर्ग में सात हाथ की, तीसरे चौथे स्वर्ग में छह हाथ की, पाँचवें से आठवें स्वर्ग तक पाँच हाथ की, नौवे से बारहवें स्वर्ग तक चार हाथ की, आनत प्राणत में साढ़े तीन हाय की, आरण अच्युत में तीन हाथ की, अधो ग्रेवेयक में ढाई हाथ की, मध्य ग्रेवेयक में दो हाथ की, उपरिम अवेयक में डेढ़ हाथ की
और अनुदिश तथा अनुत्तर में एक हाथ की है। इसी प्रकार ऊपर ऊपर के देव विक्रिया भी कमती कमती करते हैं।
पहले स्वर्ग में बत्तीस लाख, दूसरे में अट्ठाईस लाख, तीसरे में बारह लाख, चौथे में आठ लाख, पाँचवें व छठे में मिलकर चार
_ लाख, सातवें व छाठवें में मिलकर पचास हजार, २ मा नौवें व दसवें में मिल कर चालीस हजार, ग्यारहवें व बारहवें में छह हजार, तेरहवें से लेकर सोलहवें तक चार में सात सौ, अधो अवेयक में एक सौ ग्यारह, मध्य अवयक में एकसौ सात, ऊपरिम प्रैवेयक में एकानवै, अनुदिश में नौ और अनुत्तर में पाँच विमान हैं। इसी प्रकार इन विमानों की लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई भी ऊपर ऊपर कमती होती गई है। इसी से स्पष्ट है कि ऊपर ऊपर के देवों का परिप्रह घटता गया है।